SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा अजितसिंहजी इसके बाद सोनगे और दुर्गादास आदि मुख्य-मुख्य सरदारों ने अकबर को अपने साथ-साथ लिए फिरना उचित न समझा । इसलिये मारवाड़ का भार तो चाँपावत वीर सोनग को सौंपा गया, और दुर्गादास अकबर को लेकर ५०० सैनिकों के साथ राजपीपला के मार्ग से दक्षिण की तरफ़ रवाना हो गया । यद्यपि बादशाह की आज्ञा से शाही सेना ने इनका बहुत कुछ पीछा किया, तथापि उसे सफलता नहीं हुई, और ये लोग जेठ सुदी ८ ( १५ मई ) को बुरहानपुर होकर वि० सं० १७३८ की आषाढ़ बदी १० (ई० सन् १६८१ की १ जून) को शंभाजी के राज्य (पाली) में जा पहुंचे। इन्हें आया देख यद्यपि पहले तो १. यह सरेचां का ठाकुर था। २. 'अजितोदय' में लिखा है कि राठोड़-सैनिक सिरोही से आबू की तरफ़ गए, और अकबर को वहाँ रखकर मारवाड़ की ओर चले आए । इसकी सूचना पाते ही इन्द्रसिंह भी जोधपुर आ पहुँचा । परन्तु शीघ्र ही बादशाह उससे नाराज़ होगया, और उसने उसे अपने पास बुलवा कर जोधपुर का प्रबन्ध इनायतखाँ को सौंप दिया । इस पर उस ( इनायतखाँ) ने अपनी ओर से कासिमखा को वहाँ की देख-भाल सौंप दी। इसी समय अकबर आबू से लौटकर सिरोही होता हुआ पालनपुर पहुँचा । वहीं पर पहुँच कर राठोड़ भी उसके शरीक होगए और फिर बड़गाँव होते हुए थिराद की तरफ़ चले गए । इसके बाद ये फिर सिवाने होते हुए सिरोही पहुँचे । यहीं पर दुर्गादास ने मारवाड़ का भार तो सोनग को सौंप दिया और स्वयं अकबर के साथ मेवाड़ की तरफ़ चला गया । इसके बाद वह रानाजी से द्रव्य की सहायता लेकर ( क्योंकि उस समय महाराना जयसिंहजी अकबर को शरण देने में असमर्थ थे ) अकबर के साथ नर्मदा को पार करता हुआ शंभाजी के पास जा पहुँचा ( देखो सर्ग ११, श्लो० २१-२६ )। 'हिस्ट्री ऑफ औरङ्गजेब' में लिखा है कि अकबर सांचोर से चलकर मेवाड़ पहुँचा । यद्यपि महाराना जयसिंह ने उसका अच्छा आदर सत्कार किया, तथापि वहाँ पर भी शाही सेना के आक्रमण का भय देख दुर्गादास उसे दक्षिण की ओर ले जाने का प्रबन्ध करने लगा। (देखो भा० ३, पृ० ४१७-४१८)। 'राजपूताने के इतिहास' में लिखा है कि महाराना ने दुर्गादास को पत्र लिखकर अकबर को मेवाड़ में लाने से मना कर दिया था। ( देखो भा० ३, पृ० ८६७ )। कहीं-कहीं इनका मल्लानी के रेतीले भाग की ओर जाना भी लिखा है । वास्तव में दुर्गादास का अकबर को दक्षिण की ओर ले जाने से यही तात्पर्य था कि इससे बादशाह का ध्यान उधर बट जायगा, और मारवाड़ का आक्रमण शिथिल हो जायगा । ३. 'हिस्ट्री ऑफ़ औरङ्गजेब' भा० ४, पृ० २४६ । उस इतिहास में यह भी लिखा है कि यद्यपि बादशाह ने सब मार्गों और घाटों का प्रबन्ध कर रक्खा था, तथापि दुर्गादास बड़ी चालाकी से अपना पीछा करनेवालों को धोके में डालता हुआ दूंगरपूर से अहमदनगर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy