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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १७३८ की चैत्र सुदी ११ ( ई० सन् १६८१ की २० मार्च) को इनायतखाँ अजमेर का फौजदार बनाया गया, और उसे भी राठोड़ों को दबाने की आज्ञा मिली । जब इससे भी राठोड़-सरदारों का उपद्रव शांत न हुआ, तब बादशाह ने स्वर्गवासी महाराजा जसवन्तसिंहजी के बनावटी पुत्र मुहम्मदीराज को दिल्ली ( शाहजहानाबाद ) से अपने पास बुलवाया । परन्तु उपद्रव की भयंकरता के कारण वह उसे जोधपुर की गद्दी पर न बिठा सका । पहले लिखे अनुसार राठोड़ों की सेना भी अकबर को लिये हुए जालोर जा पहुँची। परन्तु शाह आलम की सेना ने इसका पीछा न छोड़ा । इससे जैसे ही उक्त सेना जालोर पहुँची, वैसे ही राठोड़-वाहिनी ने उस पर अचानक धावा कर दिया, और जो कुछ सामान हाथ लगा, उसे लेकर वह सांचोर चली गई । जब वहाँ पर भी शाही सेना ने उनका पीछा किया, तब फिर उसने उसका सामना किया, और मार-काट मचा कर ( सिवाने होती हुई ) सिरोही की तरफ़ चली गई । की तरफ रवाना किया, और साथ ही तमाम शाही चौकियों के अफसरों के नाम भी इधर-उधर के मार्गों को रोककर अकबर को राजस्थान से बाहर न जाने देने की आज्ञा लिख भेजी। (देखो भा० ३, पृ० ४१६-४१७)। कागा (जोधपुर नगर के बाहर ) के एक कीर्तिस्तम्भ पर के वि० सं० १७३७ की माघ सुदि १५ के लेख से उस समय जोधपुर का इन्द्रसिंह के शासन में होना प्रकट होता है। १. मासिरेआलमगीरी, पृ० २०६ । वि० सं० १७४० के पौष (ई० स० १६८३ के दिसम्बर ) में इसे जोधपुर के शासन के साथ ही अजमेर की सूबेदारी भी दी गई थी। ( हिस्ट्री ऑफ़ औरङ्गजेब, भा० ५, पृ० २७३ फुटनोट)। २. 'मासिरेआलमगीरी' में इसका वि० सं० १७३८ की वैशाख सुदी १ (ई० स० १६८१ की ६ अप्रेल ) को अजमेर पहुँचना लिखा है । (देखो पृ० २०७)। ३. मासिरेआलमगीरी, पृ० २०४ । ४. अजितोदय, सर्ग ११ श्लो० १६-१८ । उक्त इतिहास में बहादुरखाँ द्वारा राठोड़ों का पीछा किया जाना लिखा है । 'राजरूपक' में लिखा है कि बादशाह की आज्ञा से शाह आलम ने ८ हज़ार सुवर्ण मुद्राएँ भेजकर दुर्गादास को अपनी तरफ़ मिलाना चाहा था । परंतु वीर दुर्गादास ने वे मुहरें लेकर अकबर को खर्च के लिये दे दी, और शरणागत के साथ विश्वासघात करने से साफ इनकार कर दिया। 'अजितोदय' में शाहआलम द्वारा चार हज़ार मुहरों का भेजा जाना लिखा है । ( देखो सर्ग ११ श्लो० २०)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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