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________________ मारवाड़ का इतिहास . . . . . . .. महाराजा जसवंतसिंहजी का प्रताप और गौरव ___ महाराज जसवंतसिंहजी के विषय में अपनी तरफ से कुछ न लिखकर उस समय के और इस समय के लेखकों की कुछ पंक्तियाँ यहाँ पर उद्धृत की जाती हैं । इनसे उनके प्रताप और गौरव का भलीभांति पता चल जायगाः “शाहजहाँ ने महाराज जसवंत को, जो हिंदुस्थान के राजाओं में श्रेष्ठ और फौज, सामान तथा रौबदाब में प्रथम था और जिसे बादशाह सल्तनत का मजबूत स्तम्भ समझता था, महाराज का खिताब दिया था" ( आलमगीरनामा, पृ० ३२ )। बड़े राजाओं में बड़ा महाराजा जसवंतसिंह (मासिर आलमगीरी, पृ० १७१ )। "जसवंतसिंह के पिछले कार्यों के कारण जो बादशाह के दिल में रंजिश रहा करती थी....... मुंतख़िबुल्लुबाब, भा० २, पृ० २५६ । "राजा (जसवंत ) फौज और सामान की ज़्यादती से हिंदुस्थान के राजाओं में बड़ा था । परन्तु वारदातों के उतार-चढ़ाव में हमेशा उसका झुकाव एक तरफ़ ही रहता था, इससे दुनियादारी में ज़्यादा फायदा न उठा सका। मासिरुलउमरा, भा० ३, पृ० ६०३ । __ In a letter written in 1659, Aurangzib speaks of Jaswant as "the infidel who has destroyed mosques and built idol-temples on their sites. ** ___Sarkar's Histroy of Aurangzib, Vol. III p. 368-389. १. "रुक्ने रक़ीने दौलत व सितूने क़वीमे सल्तनत" | २. “उम्दा राजाहाये अज़ाम महाराज जसवंतसिंह"। ३. परन्तु वह इसका बदला इनके जीते-जी न ले सका । ४. ख्यातों में लिखा है कि वि० सं० १७३३ में जिस समय महाराज काबुल में थे, उस समय उनको सूचना मिली कि बादशाह औरंगज़ेब ने मन्दिर गिरवाने की आज्ञा निकाली है । इस पर महाराज ने साथ के शाही अमीरों के सामने क्रोध प्रकट कर कहा कि यदि बादशाह ऐसा करेगा, तो हम भी मसजिदों को गिरवाना शुरू करेंगे । जब उन अमीरों के द्वारा औरंगजेब को यह सूचना मिली, तब उसने बखेड़ा शान्त करने के लिये अपनी आज्ञा वापस ले ली। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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