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________________ राजा गजसिंहजी अगले वर्ष शाहज़ादे खुर्रम ने उड़ीसा और बिहार फ़तह कर फिर से दिल्ली के तख़्त पर अधिकार करने के लिये चढ़ाई की । परन्तु बनारस के पास टोंस नदी के किनारे उसे शाहजादे परवेज़ की सेना से परास्त होकर भागना पड़ा । इस युद्ध का श्रेय भी राजा गजसिंहजी की अद्भुत वीरता को ही दिया जाता है । इसका वर्णन इस प्रकार लिखा मिलता है । वि० सं० १६८१ (ई० सन् १६२४ ) में जिस समय शाहज़ादा खुर्रम फिर से बादशाहत पर अधिकार करने की नीयत से सेना सज कर रवाना हुआ, उस समय उसकी सेना के अग्रभाग का संचालक महाराना अमरसिंह का पुत्र भीम था । इसकी सूचना पाते ही शाहज़ादा परवेज़ भी उसके मुकाबले को चला । जब दोनों सेनाओं का सामना हुआ, तब परवेज़ ने जयपुर महाराज जयसिंहजी के पास अधिक सेना देख कर उन्हें अपनी सेना के अग्रभाग का मुखिया बना दिया । हमेशा से राठोड़ नरेशों के ही शाही सेना के अग्रभाग में रहने का रिवाज होने से यह बात राजा गजसिंहजी को अच्छी न लगी । इससे यह अपनी सेना के साथ नदी की बाईं तरफ़ परवेज़ की सेना से कुछ हट कर खड़े हो गए । युद्ध होने पर कुछ ही देर में जिस समय परवेज़ की सेना के पैर उखड़ गए, उस समय शाहजादे खर्रम ने भीम को एक तर्फ खड़ी हुई राजा गजसिंहजी की सेना पर आक्रमण कर उसे भगा देने का इशारा किया । इस पर तत्काल भीम और गजसिंहजी की सेनाओं के बीच युद्ध छिड़ गया । यद्यपि विजय से इससे प्रगट होता है कि पहले मेड़ते पर बादशाह का ही अधिकार था, परन्तु इस अवसर पर महाराज की वीरताओं के उपलक्ष में वह नगर इनके शासन में दे दिया गया होगा। १. भीम मेवाड़ की उस सेना का सेनापति था, जो उस समय महाराणा करणसिंहजी की तरफ़ से बादशाही सेवा में रहा करती थी । जहाँगीर ने भीम को राजा की पदवी, और टोडे की जागीर दी थी। कुछ समय बाद ही बादशाह की कृपा से वह पाँच हज़ारी मनसब तक पहुँच गया था। इसके बाद वह शाहज़ादे खर्रम से मिल गया, और उसने खुर्रम की आज्ञा से पटना विजय कर लिया । २. मारवाड़ की ख्यातों में इस युद्ध का पटने के पास, 'मुंतखिबुल्लुबाब' में बंगाल की सरहद में, और 'तुजुक जहाँगीरी' में बनारस के पास होना लिखा है । कहीं कहीं इस युद्ध का झूसी के पास होना भी लिखा मिलता है । ३. फ़ारसी तवारीखों से इस युद्ध में जयसिंहजी के सम्मिलित होने का पता नहीं चलता। परन्तु साथ ही उनमें कई अन्य नरेशों के नाम भी नहीं दिए हैं । २०३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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