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________________ मारवाड़ का इतिहास र शक्तिसिंह, १० मोहनदास, ११ अखैराज, १२ जैतसी, १३ जसवंतसिंह, २४ करणमल्ल, १५ केशवदास और १६ रामसिंह । सलीम बादशाह जहांगीर के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा, तब वि० सं० १६६४ की कार्तिक सुदि ४ ( ई. स. १६०७ का १४ अक्टोबर ) को उसने कृष्णसिंहजी को १,००० ज़ात और ५०० सवारों का मनसब दिया ( देखो-'तुजुकजहांगीरी', पृष्ठ ६२)। इसके बाद इसमें वृद्धि होते होते वि० सं० १६७१ की चैत्र वदि १ (ई० स० १६१५ की ६ मार्च ) को इनका मनसब ३,००० जात और १,५०० सवारों का हो गया (देखो-'तुजुकजहांगीरो', पृष्ठ १३६)। इन्हें बादशाह की तरफ से सोठेलाव, आदि कुछ परगने और भी जागीर में मिले थे । वि० सं० १६६८ (ई० स० १६१५) में इसी सोठेलाव के पूर्व में इन्होंने अपने नाम पर किशनगढ़ नगर बसाकर उक्त राज्य की स्थापना की। १. शक्तिसिंह एक वीरप्रकृति का पुरुष था। इसकी वीरता से प्रसन्न होकर बादशाह अकबर ने इसे राव की पदवी के साथ ही सोजत, फूलिया और केकड़ी के परगने जागीर में दिए थे । करीब एक वर्ष तक तो सोजत इसी के अधिकार में रहा । परन्तु इसके बाद वहाँ का शासन शूरसिंहजी को दे दिया गया और इसके एवज़ में इसे जैतारण का प्रान्त मिला। 'चीफ्स एण्ड लीडिंग फेमिलीज़ इन राजपूतानां (ई० सन् १६१६ में प्रकाशित के पृ० १०२) में लिखा है कि एक बार शक्तिसिंह ने बादशाह अकबर को डूबने से बचाया था। इसी से प्रसन्न होकर उसने उसे १५ गाँव जागीर में दिए थे । इसके बाद वि० सं० १६३४ (ई० सन् १८७७) में इसके वंशज माधवसिंह को भारत सरकार ने फिर ने राव की पदवी दी । खरवा (अजमेर-प्रान्त में) के राव इसी शक्तिसिंह के वंशज हैं । २. जैतसिंह के वंशज दुगोली, लोटोती आदि में हैं । १८० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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