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________________ मारवाड़ का इतिहास " सन् १८१ हिजरी, जुलूस १८ में राजा भगवंतदास, शाहकुलीखाँ और लश्करख़ाँ को एक बड़ी फ़ौज देकर हुक्म दिया कि ईडर होते हुए राना की सरहद में जाओ और उधर के तमाम सरदारों को ताबे करो । जो सरकशी करे, उसको सजा दो ।" I " पूरा महीना भी नहीं गुजरा था कि राजा भगवंतदास मय लश्कर के राना प्रताप के बेटे को साथ लेकर दरबार में हाज़िर हुआ । इसकी तफ़सील इस तरह है : जब शाही लश्कर राना के रहने की जगह गोगूँदे में पहुँचा, तब राना, गुज़रे हुए जमाने में जो क़सूर किए थे उनके लिये शर्मिन्दगी और अफ़सोस जाहिर करके, राजा भगवंतदास से आकर मिला और उससे शाही दरबार में सिफ़ारिश चाही । साथ ही उसने मानसिंह को अपने घर लेजाकर मेहमानदारी की और अपने लड़के को उसके साथ कर दिया । उसने यह भी कहा कि बदकिस्मती से पहले मेरे दिल में घबराहट थी । मगर अब आपके ज़रिए से बादशाह से इल्तिजा करता हूँ और अपने लड़के को ख़िदमत में भेजता हूँ । कुछ दिनों में अपने दिल को तसल्ली देकर खुद भी हाज़िर हो जाऊँगी ।" राजपूताने की ख्यातों आदि से मिलान करने पर यह सब अबुल फ़ज़ल की कपोलकल्पना ही प्रतीत होती है । परन्तु फिर भी शाही दरबार के इतिहास-लेखक ने तो राव चन्द्रसेन और महाराणा प्रताप को अपनी तरफ़ से एक एक बार शाही अधीनता में सौंप ही दिया है । परन्तु ये घटनाएँ सत्य से बिलकुल परे हैं । १–अकबरनामे में लिखा है: “बादशाह ने कुतुबुद्दीनख़ाँ, राजा भगवंतदास और कुँअर मानसिंह को मय थोड़े-से शाही बहादुरों के रवाना कर हुक्म दिया कि पहाड़ों में जाकर राना को तलाश करें । मगर जब उसका पता न चला तब वे गोगूँदे चले गए । शाही हुक्म के लौट आए थे, “चूँकि राजा भगवंतदास और कुतुबुद्दीनख़ाँ बगैर इसलिये बादशाह ने गुस्से होकर उनकी डेवढ़ी बंद कर दी । लेकिन जब उन्होंने अपनी ग़लती से शर्मिन्दा होकर माफ़ी माँगी, तो फिर हाज़िर होने की इजाजत दे दी ।" १. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ६४ २. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ६६-६७ ३. अकबरनामा, भा० ३, पृ० १६१ ४. अकबरनामा, भा० ३, पृ० १६५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १६४ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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