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________________ मारवाड़ का इतिहास ४–जिस प्रकार महाराणा प्रताप के गद्दी पर बैठने के पूर्व ही बाबर आदि यवनों के साथ के युद्धों में मेवाड़ के बड़े-बड़े वीर मारे जा चुके थे, उसी प्रकार राव चन्द्रसेनजी के सिंहासनारूढ़ होने के पूर्व भी शेरशाह आदि यवनों के साथ के युद्धों में मारवाड़ के वीर योद्धा वीरगति पा चुके थे । ५ - जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपनी स्वाधीनता की रक्षा और देशोद्धार के लिये गोगूदा और खमणोर के बीच की पर्वत श्रेणी का आश्रय लेकर विशाल यवन-सेना का सामना किया था, उसी प्रकार राव चन्द्रसेनजी ने भी सिवाने के पहाड़ों का आश्रय लेकर यवनवाहिनी को हैरान किया ६ - जिस प्रकार यवनवाहिनी के लगातार आक्रमणों के कारण एक वार महाराणा प्रताप को बाँसवाड़े की तरफ़ जाना पड़ा था और दूसरी बार छप्पन के पहाड़ों का आश्रय लेना पड़ा था, उसी प्रकार राव चन्द्रसेनजी को भी डूंगरपुर, बाँसवाड़े आदि की तरफ़ जाना पड़ा था और सिवाने की तरफ के छप्पन के पहाड़ तो बहुत समय तक इनके मुख्य प्रश्रय रहे थे । ७-जिस प्रकार अंत समय तक महाराणा प्रताप अन्य खोए हुए प्रदेशों पर अधिकार कर लेने पर भी चित्तौड़ पर अधिकार न कर सके थे, उसी प्रकार राव चन्द्रसेनजी भी सोजत का प्रदेश ले लेने पर भी पुनः जोधपुर अधिकृत न कर सके । ८-अबुलफ़ज़ल ने अपने अकबरनामे में लिखा है: " सन् १७८ हिजरी साल, १५ वें जुलूस में जब अकबर नागोर आया, तो चन्द्रसेन मालदेव का लड़का जो हिन्दुस्तान के बड़े ज़मीदारों में है, हाज़िर होकर शाही इनायत में हुआ ।" परन्तु घटनाक्रम से ज्ञात होता है कि यद्यपि वास्तव में ही बादशाह अकबर राव चन्द्रसेनजी पर कृपा दिखलाना चाहता था, तथापि इन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया । यह बात उक्त पुस्तकै के इस लेख से भी सिद्ध होती है : - " सन् १८१ हिजरी शुरू साल ११ जुलूस में जब बादशाह अजमेर आया, तो सुना कि चन्द्रसेन राजा मालदेव के लड़के ने बगावत इख्तियार करली है और १. अकबरनामा, भा० ३, पृ० २३८ २. अकबरनामा, भा० २, पृ० ३५७-३५८ १. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८०-८१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १६२ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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