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________________ मारवाड़ का इतिहास पहले-पहल मालदेव पर कि जो नागोर और जोधपुर के मुल्क का मालिक था और हिंदुस्थान के राजाओं में फ़ौज और ठाट की अधिकता में बढ़कर था तथा ५०,००० सवार के क़रीब उसके झंडे के नीचे जमा थे, गया । ( फरिश्ता, जिल्द १, पे० २२७ ) जो (मालदेव ) बड़े राजाओं में दबदबेवाला था और उसकी फ़ौज में ८०,००० सिपाही थे । हालांकि राना सांगा, जो कि हुमायूँ से लड़ा था, दौलत और ठाट में मालदेव के बराबर था, मगर मुल्क की और फ़ौज की ज़्यादती में राव मालदेव उससे बड़ा था । कई बार मालदेव के फ़ौजी अफसरों को राना सांगा से लड़ाई करनी पड़ी थी । मगर हर बार जीत मालदेव की ही तरफ़ रही । ( तुजुक जहाँगीरी, दीबाचा, पे० ७ ) यह लाल ( जिसकी क़ीमत ६०,००० रुपये की गई है ) पहले राव मालदेव के पास था, जो राठोड़ों का सरदार और हिन्दुस्तान के बहुत बड़े राजाओं में से था । ( तुजुक जहाँगीरी, पे० १४१ ) मालदेव हिंदुस्थान के बड़े जमींदारों में से था । राना की बराबरी करनेवाला जमींदार वही था, बल्कि एक लड़ाई में उसने राना पर फ़तेह भी पाई थी । उसका हाल अकबरनामे में तफ़सील से लिखा है । ( तुजुक जहाँगीरी, पृ० २८० ) इसके बाद शर्फुद्दीन हुसैन को राजा मालदेव को सजा देने और उसके मुल्क को फ़तेह करने के लिये भेजा । यह ( मालदेव) जसवंत के बाप-दादाओं में था, जो क़दीम जमाने से हिंदुस्तान के मशहूर राजाओं में गिने जाते थे और दिल्ली के 1 १. महाराना सांगाजी का समय वि० सं० १५६६ ( ई० सन् १५०६ ) से १५८४ ( ई० स० १५२८) तक था और राव मालदेवजी वि० सं० १५८८ ( ई० स० १५३१ ) में गद्दी पर बैठे थे । इसलिये इस घटना का संबंध ठीक प्रतीत नहीं होता । हाँ, इस घटना का संबंध उस (राना) के छोटे पुत्र विक्रमादित्य और उसके उत्तराधिकारियों से हो सकता है । अथवा यह भी संभव है कि मालदेवजी के समय के कुछ सेनानायक, जो इनके पूर्व से ही मारवाड़ की सेना का संचालन करते आए थे, उससे लड़े हों । उद्घृत पंक्तियों में भी सेनापतियों का ही उल्लेख है । १४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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