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________________ राव मालदेवजी मेड़ते' के परगनों पर अधिकार कर लिया । इस पर समय का प्रभाव देख मालदेवजी ने शांति धारण कर ली । वि० सं० १६१९ की कार्त्तिक सुदी १२ ( ई० स० १५६२ की ७ नवंबर) को इन प्रबल पराक्रमी नरेश राव मालदेवजी का स्वर्गवास गया। राव मालदेवजी बड़े वीर और प्रतापी थे । जिस समय यह राज्य के अधिकारी हुए, उस समय इनका प्रताप उदय होते हुए बाल रवि के समान अदूरव्यापी अर्थात्केवल जोधपुर और सोजत प्रांतों तक ही फैला हुआ था । परन्तु होते-होते १० वर्षों के भीतर इनका वही बालप्रताप मध्याह्न के सूर्य के प्रखर तेज के समान समग्र राजस्थान को पारकर दिल्ली और आगरे के पास तक अर्थात्-हिंडौन, बयाना, फतैपुर, सीकरी और मेवात तक फैल गया था । इसी से हुमायूँ जैसे बादशाह को भी शेरशाह - रूपी अंधकार से त्राण पाने के लिये इन्हीं की शरण लेनी पड़ी थी । यदि मूर्ख शाही सैनिकों ने कुछ समझ से काम लिया होता और गोवध न कर क्षत्रिय राठोड़ वीरों का दिल न दुखाया होता तथा वीरमजी के और मालदेवजी के बीच फूट का बीज न उत्पन्न हुआ होता, तो उस समय का भारतीय इतिहास भी कुछ और ही दृश्य दिखलाता । परन्तु ईश्वर की माया - मरीचिका के प्रभाव से इन घटनाओं के हो जाने के कारण एकाएक पासा पलट गया और साथ ही वि० सं० १६०० ( ई० स० १५४३ ) में १. वि० सं० १६२० ( हि० स० ६७१ ) में बादशाह अकबर मिर्ज़ा शर्फुद्दीन से नाराज़ हो गया । इसी से उसने उसके स्थान पर हुसैन कुली को नियत कर दिया । इस पर हुसैन कुली ने मिर्ज़ा को भगाकर अजमेर, जालोर, नागोर और मेड़ते के परगने उससे छीन लिए। इसके बाद उसने बादशाह की आज्ञा से मेड़ता जयमल से लेकर जगमाल को दे दिया | यह देख जयमल मेवाड़ की तरफ चला गया और वि० सं० १६२४ ( ई० सन् १५६७ ) में महाराना उदयसिंहजी के किला छोड़कर पर्वतों में चले जाने पर चित्तौड़ के किले की रक्षा करता हुआ अकबर के हाथ से मारा गया । यद्यपि ‘अकबरनामा' (भा० २, पृ० १६६ ) आदि फ़ारसी तवारीख़ों में जयमल से मेड़ता लेने का उल्लेख है, तथापि वास्तव में मेड़ता जयमल से न लिया जाकर शर्फुद्दीन से ही लिया गया था । जयमल तो शर्फुद्दीन से नाराज़ होकर पहले ही नागोर से मेवाड़ की तरफ चला गया था । २. उस समय इनके पुत्र चंद्रसेनजी सिवाने में थे । अतः इनकी मृत्यु का समाचार पाते ही वह वहाँ से जोधपुर चले आए। कार्तिक सुदी १३ को मंडोर में रावजी की अंत्येष्टि क्रिया की गई। इनके पीछे १० रानियाँ सती हुई थीं । १४१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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