SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास 1 छोड़ कर भाग गया, और वहाँ पर रावजी का अधिकार हो गया । परन्तु दो वर्ष बाद इधर-उधर के लोगों को जमा कर मलिक़ख़ाँ ने एक बार फिर किले पर चढ़ाई कर दी । यद्यपि इस अचानक होनेवाले आक्रमण से मालदेवजी की सेना किले में घिर गई, तथापि वह बराबर सात दिन तक शत्रु का सामना करती रही । परन्तु इसी बीच इधर तो रसद की कमी हो गई और उधर किले के कुछ अन्य निवासी विश्वास घात कर पठानों के प्रलोभनों में पड़ गए । इस पर लाचार हो राठोड़-सेना को किला छोड़ना पड़ी। वि० सं० १६१३ (ई० सन् १५५६ ) में राव मालदेवजी ने बगड़ी के ठाकुर जैतावत देवीदास की अधीनता में हांजीख़ाँ पर सेना भेजी । यह देख उसने महाराना उदयसिंहजी से सहायता माँगी । उन्होंने भी इसे स्वीकार कर अपने सैनिक उसकी मदद में भेज दिए । राठोड़ सेनानायक ने पहले से ही अपनी सेना की संख्या कम होने और महाराना के हाजीख़ाँ से मिल जाने के कारण युद्ध करना उचित न समझा । इसी अवसर पर जैमल ने भी महाराना की मदद से मेड़ते पर फिर से अधिकार कर लिया । परन्तु इसके कुछ ही दिनों बाद महाराना उदय सिंहजी के और हाजीख़ाँ के बीच झगड़ा हो गया और स्वयं महाराना ने बीकानेर के राव कल्याणमलजी और जयमल को साथ लेकर हाजीख़ाँ पर चढ़ाई कर दी । यह देख खाँ ने मालदेवजी से सहायता चाही । इस पर रावजी ने पहले के अपमान का बदला लेने के लिये देवीदास की अधीनता में १,५०० सवार हाजीख़ाँ की मदद को भेज दिए । हरमाड़ा गाँव ( अजमेर प्रांत) के पास पहुँचने पर रानाजी की सेना से इनका १. तारीख पालनपुर, जिल्द १ पृ० ७३-७६ । २. वि० सं० १६१२ के श्रावण ( ई० स० १५५५ की जुलाई ) में ईरान की सेना की मदद से हुमायूँ ने दिल्ली और आगरे पर फिर अधिकार कर लिया था । परंतु वि० सं० १६१२ के माघ ( ई० स० १५५६ की जनवरी ) में उसकी मृत्यु होगई और उसका पुत्र अकबर गद्दी पर बैठा । इस पर पठान हाजीख़ाँ ने जो शेरशाह का गुलाम था अलवर से आकर अजमेर और नागोर पर अधिकार करलिया । उस समय अजमेर रानाजी के अधिकार में था । ( ईलियट्स हिस्ट्री ऑफ इंडिया, भा० ६, पृ० २१ ) ३. कहते हैं कि महाराना उदयसिंहजी ने मालदेवजी के विरुद्ध दी हुई मदद के बदले हाजी खाँ से रंगराय नामक नर्तकी को माँगा था । परन्तु हाजीखाँ के उसको देने से इनकार कर देने पर रानाजी नाराज़ हो गए और उस पर चढ़ाई कर दी। १३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy