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________________ राव मालदेवजी जब उसने इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया, तब रावजी ने क्रुद्ध होकर स्वयं मेड़ते पर चढ़ाई की और उक्त नगर को घेर लिया। यह देख जयमल भी युद्ध के लिये तैयार हुआ । इसी बीच उसने दूत द्वारा बीकानेर के राव कल्याणमलजी के पास भी सहायता के लिये सेना भेजने की प्रार्थना लिख भेजी । युद्ध होने पर यद्यपि एक बार तो नगर पर रावजी की सेना का अधिकार हो गया, तथापि बाद में बीकानेरवालों की सहायता पहुँच जाने से इन्हें वहाँ से लौट आना पड़ा । इस युद्ध में मालदेवजी का सेनापति पृथ्वीराज और भारमल का पुत्र राठोड़ नगा मारा गया था। अतः वीर देवीदास ने अपने भाई पृथ्वीराज का बदला लेने का विचार कर मालदेवजी से मेड़ते पर चढ़ाई करने की आज्ञा माँगी। इन्होंने भी उसकी प्रार्थना स्वीकार करली और अपने पुत्र चंद्रसेनजी को सेना देकर उसके साथ कर दिया । ये लोग मार्ग के गाँवों को लूटते हुए मेड़ते पहुँचे । यह देख जयमल भी युद्ध के लिये तैयार हो गया। इसी अवसर पर विवाह करने को बीकानेर जाते हुए महाराना उदयसिंहजी उधर आ निकले और उन्होंने इस गृहकलह को शांत करने के लिये समझा-बुझाकर देवीदास को तो जोधपुर की तरफ़ लौटा दिया और जयमल को अपने साथ लेलिया । इससे मेड़ते पर विना युद्ध के ही मालदेवजी का अधिकार हो गया । पहले लिखा जा चुका है कि वि० सं० १५९५ ( ई० सन् १५३८ ) के पूर्व ही जालोर पर बल्लोचों का अधिकार हो गया था और पठान भागकर गुजरात की तरफ़ चले गए थे । परन्तु वि० सं० १६०६ (ई० सन् १५५२ ) के करीब मलिक़खाँ की अधीनता में पठानों ने जालोर पर प्रत्याक्रमण कर वहाँ के बहुत-से बल्लोचों को मार डाला। इस पर बल्लोचों के कामदार गंगादास ने सींधलों से मिलकर मालदेवजी से सहायता मांगी । इन्होंने भी अपनी सेना के द्वारा उन्हें किले से सही सलामत निकलवा कर पाटन ( गुजरात में ) पहुँचवा दिया और जालोर के किले पर अपना अधिकार कर लिया। परन्तु राठोड़ सेना उस किले में पूरी तौर से अपने पैर भी न जमाने पाई थी कि मलिकखाँ ने उस पर आक्रमण कर दिया । पठान लोग किले में रह चुकने के कारण वहाँ की हरएक बात से परिचित थे। इसलिये राठोड़ों को लाचार होकर किला छोड़ देना पड़ा । यह घटना वि० सं० १६१० ( ई० सन् १५५३) की है । इसके कुछ काल बाद ही अगली पराजय का बदला लेने के लिये रावजी की सेना ने फिर जालोर पर चढ़ाई की । मलिकखाँ किला १३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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