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________________ राव मालदेवजी यह देख वीरमदेव भी युद्ध के लिये तैयार हो गया । परन्तु अन्त में लोगों के समझाने से वह मेड़ता छोड़कर अजमेर चला गया और मेड़ते पर मालदेवजी का अधिकार हो गया । उपर्युक्त घटना के अवसर पर रावजी ने राठोड़ वरसिंह के पौत्र सहसा को रीयाँ की जागीर दी थी । इससे वीरम उससे असंतुष्ट था । एक रोज जिस समय वीरम वींटली (अजमेर) के किले पर खड़ा था, उस समय उसकी दृष्टि दूर से रीयाँ की पहाड़ी पर जा पड़ी और साथ ही पहले की घटना के याद आ जाने से उसके हृदय में प्रतीकार की आग धधक उठी । इसीसे उसने लोगों के समझाने पर कुछ भी ध्यान न देकर रीयाँ पर चढ़ाई कर दी । परन्तु जैसे ही यह समाचार नागोर में मालदेवजी को मिला, वैसे ही इन्होंने अपनी सेना को सहसा की सहायता के लिये भेज दिया । यद्यपि वीरम ने रीयाँ के पास पहुँच बड़ी वीरता से युद्ध किया, तथापि मालदेवजी की विशाल सेना के आ जाने से वह सफल न हो सका । सहसा सम्मुख रण में मारा गया और वीरम लौट कर अजमेर चला गया । I इस घटना के बाद मालदेवजी ने अपने सेनापति जैता और कूँपा को सेना लेकर अजमेर पर चढ़ जाने और वीरम को हटा कर वहाँ पर अधिकार कर लेने की आज्ञा दी । यद्यपि इन दोनों के वहाँ पहुँचने पर वीरम ने भी बड़ी वीरता से इनका सामना किया, तथापि अन्त में उसे अजमेर छोड़ना पड़ा और वहाँ पर राव मालदेवजी का अधिकार हो गया । ये सारी घटनाएँ भी वि० सं० १५६१ ( ई० स० १५३५ ) में ही हुई थीं । इस प्रकार अजमेर के भी हाथ से निकल जाने पर वीरम डीडवाने की तरफ़ चला गया । परन्तु रावजी की सेना ने फिर भी उसका पीछा किया । इससे दोनों के बीच फिर एक बार घोर युद्ध हुआ अंत में डीडवाने पर भी राव मालदेवजी का अधिकार हो गया । इसके बाद वीरम फतैपुर-भूंझयूँ की तरफ रवाना हुआ । परन्तु मार्ग में जिस समय वह नराणा नामक गाँव में पहुँचा, उस समय वहाँ के सेखावत (कछवाहा ) रायमल ने वीरम का बहुत कुछ आदर-सत्कार कर उसे अपने पास रख लिया । क़रीब एक वर्ष तक वीरम वहीं रहा । इसके बाद उसने बोयल और वरणहड़ा नाम के गाँवों पर अधिकार कर वहाँ पर अपना निवास कायम किया । १. वि० सं० १५७५ ( ई० स० १५१८) का, इसके पिता तेजसी की मृत्यु एक लेख रीयाँ की गढ़ीवाली पहाड़ी के उत्तर में मिला है । ११६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat समय का www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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