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________________ मारवाड़ का इतिहास अधिकार कर लिया । यह सूचना पा दौलतखाँ लौटकर इनके मुक़ाबले को आया । परन्तु अंत में उसे हारकर अजमेर की तरफ़ भागना पड़ा । यह घटना वि० सं० १५६१ ( ई० सन् १५३४ ) के पूर्व की हैं । इस प्रकार नागोर पर क़ब्ज़ा हो जाने के बाद शत्रु के आक्रमण से उसकी रक्षा करने के लिये उसके इर्द-गिर्द के प्रदेशों में थाने बिठला दिए गए । यद्यपि इसके कुछ दिन बाद दौलतखाँ ने एक बार नागोर विजय का मार्ग साफ़ करने के लिये भावँडा गांव के थाने पर हमला भी किया, तथापि हर समय सावधान रहनेवाली राठोड़-सेना के सम्मुख उसे सफलता नहीं मिली । वि० सं० १५६१ ( ई० स० १५३५ ) में वीरमदेव ने गुजरात के बादशाह बहादुरशाह की तरफ़ के हाकिम शमशेरुलमुल्क को हराकर अजमेर पर अधिकार कर लिया। जब इस बात की सूचना मालदेवजी को मिली, तब इन्होंने वीरमदेव से कहलाया कि तुम इस नगर को हमें सौंप दो । वरना यदि गुजरात के बादशाह की सेना ने इस पर दुबारा चढ़ाई की, तो तुम्हारे लिये इसकी रक्षा करना कठिन हो जायगा | परन्तु उसने इस बात को न माना । इससे रावजी प्रसन्न हो गए और इन्होंने अपने सेनापति जैता और कूँपों की अध्यक्षता में मेड़ते पर सेना भेज दी । इस लेख में इस बावड़ी के बनवाने में १,२१,१२१ फदिए खर्च होना लिखा है और इतिहास में १५,००० रुपयों का उल्लेख है । इससे अनुमान होता है कि उस समय १ रुपये के क़रीब ८ फदिये आते थे । इस हिसाब से एक फदिया दो आने के क़रीब माना जा सकता है । परन्तु आजकल साधारणतः फदिए को एक आने के बराबर मानते हैं । १. ख्यातों में लिखा है कि नी तिचतुर मालदेवजी ने स्वयं ही दौलतखाँ को उसके हाथी की याद दिलाकर वीरमदेव को दण्ड देने के लिये उकसाया था । ( जब राव गाँगाजी के समय उनके और दौलतखाँ के बीच युद्ध हुआ था, तत्र दौलतखाँ की सेना का मुख्य हाथी भागकर मेड़ते चला गया था और वीरमदेव ने उसे पकड़ लिया था ) परन्तु जब दौलतखाँ मेड़ते पर अधिकार करने की चेष्टा करने लगा, तब वीरम ने मालदेवजी से सहायता की प्रार्थना की और इसी से इन्होंने मौका देख नागोर पर अधिकार कर लिया । २. इस युद्ध में राठोड़ अखैराज का पौत्र ( पंचायण का पुत्र ) अचल सिंह मारा गया । यह बड़ा वीर था और नागोर - विजय के समय इसने वहाँ के किले के दरवाज़े उतरवाकर जोधपुर भेज दिए थे । ३. इसका जन्म वि० सं० १५३४ की मँगसिर सुदि १४ को हुआ था । ४. मुँहणोत नैणसी ने वीरमदेव का परमारों से अजमेर लेना लिखा है । वह ठीक नहीं प्रतीत होता । ५. इसका जन्म वि० सं० १५५६ की मँगसिर सुदी १२ को हुआ था । ११८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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