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________________ मारवाड़ का इतिहास राव की पदवी देकर जोधपुर से उनके लिये छत्र, चंवर आदि राज-चिह्नों के भेजने का वादा किया। इसी समय जैसलमेर नरेश रावल देवीदासजी की आज्ञा से उनकी सेना ने शिव पर अधिकार कर लिया । इसकी सूचना मिलते ही जोधाजी ने वरजांग को उसके मुकाबले को मेजा । उसने वहां पहुँच शीघ्र ही जैसलमेर वालों को भगा दिया, और उसके बाद आगे बढ़ जैसलमेर पर आक्रमण करने का विचार किया । परंतु इसी बीच भाटियों ने दंड के रूप में कुछ रुपए देकर राठोड़ों से सुलह कर ली। वि० सं० १५४५ की वैशाख सुदी ५ (ई० सन् १४८८ की १६ अप्रेल ) को, ७३ वर्ष की अवस्था में, जोधपुर में, राव जोधाजी का स्वर्गवास हो गया । ___राव जोधाजी बड़े उद्योगी, साहसी, वीर, दानी और बुद्धिमान् नरेश थे। अपनी ७३ वर्ष की अवस्था में से २३ वर्ष तक तो यह पिता की सेवा में रहे, १५ वर्ष तक इन्हें घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ा और इसके बाद ३५ वर्ष तक यह अपने राज्य की उन्नति में लगे रहे । इनके समय से पूर्व ही दिल्ली की बादशाहत शिथिल हो चली थी। इसी से गुजरात, मालवा, जौनपुर, मुलतान आदि के सूबेदार स्वतंत्र होकर अपने अधिकार-विस्तार के लिये एक दूसरे से लड़ने लगे थे। उनके इसी गह-कलह के कारण जोधाजी को भी अपने राज्य-विस्तार का अच्छा मौका मिल गया। उस समय इनके अधिकार में मंडोर, जोधपुर, मेड़ता, फलोदी, पौकरन, महेवा, भाद्राजन, सोजत, गोडवाड़ का कुछ भाग, जैतारन, शिव, सिवाना, सांभर, अजमेर और __कर्नल टॉड ने लिखा है कि बीका का भाई बीदा भी कुछ आदमियों को साथ ले अपने लिये कोई नया प्रदेश प्राप्त करने को चला | पहले उसका विचार गोडवाड़-प्रांत को, जो उस समय मेवाड़वालों के अधिकार में था, हस्तगत करने का था । परंतु वहां पहुंचने पर उसका इतना आदर सत्कार किया गया कि उसे अपना वह इरादा छोड़ उत्तर की तरफ लौटना पड़ा। वहां पर उसने छापर के मोहिलों को धोका देकर मार डाला, और उनके किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद शीघ्र ही जोधपुर से और मदद पहुँच गई । इसी सहायता के एवज़ में बीदा ने लाडनू और उसके साथ के बारह गांव अपने पिता को सौंप दिए । ये अब तक जोधपुर-राज्य में सम्मिलित हैं (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिकिटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृष्ठ ११४४)। इसी बीदा के नाम पर उक्त प्रदेश बीदावाटी कहलाता है। 'तवारीख राज श्रीबीकानेर' में बीकाजी का अपने पिता को लाडनू मेट करना लिखा है। (पृष्ठ १०२-१०३)। १. कहीं-कहीं वैशाख के बदले माघ लिखा मिलता है । परंतु वह ठीक नहीं है । १०२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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