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________________ मारवाड़ का इतिहास यह नवीन उत्साह के साथ अपने विपक्षियों को तंग करने लगे। इसी बीच जोधाजी का चचेरा भाई वरजाँग भी महाराना की कैद से निकलकर काहुनी चला आया था । इस प्रकार लगातार १५ वर्षों के निज के परिश्रम, भाई-बंधुओं के उद्योग और संबंधियों की सहायता से जब जोधाजी का बल खूब बढ़ गया, तब इन्होंने मंडोर पर अधिकार करने का निश्चय किया । इसके लिये सेना के तीन भाग किए गए । एक भाग वरजॉग के साथ मंडोर की तरफ भेजा गया । दूसरे भाग ने चाँपा की अधीनता १. ख्यातों में लिखा है कि युद्ध में ज़ख्मी होकर बेहोश हो जाने के कारण वरजाँग को मेवाड़वालों ने कैद कर लिया था। परन्तु वहाँ पर वह अपने ज़ख्मों पर बाँधी जानेवाली पद्रियों को इकट्ठा करता रहता था। जब उसके घाव भर गए, और उसके पास काफी पट्टियां जमा हो गई, तब वह उनकी रस्सी बटकर उसी के द्वारा जेल के बाहर निकल गया, और मार्ग में अपना विवाह गागरून के स्वामी खीची (चौहान) चाचिगदेव की कन्या से कर जोधाजी के पास चला आया । २. मंडोर पर अधिकार करने में जोधाजी को इनके भाइयों, बंधुओं-मल्लानी के राठोड़ों, सिवाने के जैतमालोतों, पौकरन के पौकरना राठोड़ों, सेतरावा के देवराजोतों, संबंधियोंसाँखला हड़बू , रूण के साँखलों, ईदावाटी के ईदों, सेखाला (शेरगढ़ परगने ) के गोगादे चौहानों, गागरून के खाचियों, वीकपुर और पूंगल के भाटियों, भाटी शत्रुसाल (रणमल्लजी ने इस चित्तौड़ का किलेदार बनाया था। इसकी मृत्यु रावत चूंडा के हाथ से हुई थी। ) के पुत्र (बादशाही कृपा-पात्र) अर्जुन, जैसलमेर रावल केहरजी के पौत्र (कलकर्ण के पुत्र ) भाटी जैसा आदि ने सहायता दी थी। ख्यातों में लिखा है कि यह जैसा हड़बू का भानजा और भाथेड़ा का स्वामी था। जोधाजी ने उसकी सहायता को एवज़ में उस खास मंडोर को छोड़ उसके साथ के अन्य सारे प्रदेश का चौथा हिस्सा देने का वादा किया था । परन्तु जब उसकी बहन का विवाह जोधाजी के पुत्र सूजाजी से हुआ, तब इन्होंने वह हिस्सा उससे दहेज़ में माँग लिया । यद्यपि इससे जोधाजी को मंडोर-राज्य पर अधिकार कर लेने पर भी उसका चौथा भाग जैसा को न देना पड़ा, तथापि जैसा नाराज़ होकर महाराना के पास मेवाड़ चला गया, और इनके कई बार बुलवाने पर भी लौटकर न पाया । यह देख जोधाजी ने उसके पुत्र जोधा को बालरवा जागीर में दिया। ख्यातों में यह भी लिखा है कि जिस समय जोधाजी, सेतरावे के स्वामी ( देवराज के पुत्र) रावत लूणकर्ण के पास सहायता माँगने गए, उस समय उसने इधर-उधर की बातें कर इन्हें टालना चाहा । परन्तु उसकी स्त्री ने, जो रिश्ते में जोधाजी की मौसी थी, इस बात की सूचना मिलते ही उसे ज़नाने में बुलवा लिया, और जोधाजी को चुने हुए १४० घोड़े देने की आज्ञा चुपचाप बाहर भिजवा दी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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