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________________ राव जोधाजी राठोड़ों का अधिकार चला आता था । तीसरा जॉगलू के सांखले और पूंगल के भाटी आदि इनके संबंधी थे। जब रावत चूंडा ने मंडोर का प्रबंध अच्छी तरह कर लिया, तब उसने महाराना कुंभाजी को लिखा कि वह सोजत पर सेना भेज कर मारवाड़ को सदा के लिये मेवाड़-राज्य में मिला सकते हैं । इसी के अनुसार महाराना ने जोधाजी के चचेरे भाई राघवदेव को, सोजत जागीर में देकर, वहाँ पर अधिकार करने के लिये भेज दिया, और उसे यह लालच भी दिया कि यदि वह वहाँ का प्रबंध अच्छी तरह से कर लेगा, तो मंडोर भी उसी के अधिकार में दे दिया जायगा । इस पर राघवदेव ने शीघ्र ही मेवाड़ की सेना के साथ जाकर सोजत, बगड़ी, कापरड़ा आदि पर अधिकार कर लिया, और विपक्षियों के आक्रमण से उनकी रक्षा करने के लिये चौकड़ी और कोसाना पर सैनिक-चौकियाँ कायम कर दी । इसके बाद नरबर्दै ने, मेवाड़वालों की सहायता से, काहुनी पर चढ़ाई की । परन्तु पहले से सूचना मिल जाने के कारण जोधाजी वहाँ से और भी आगे के निर्जल और रेतीले प्रांत में घुस गए । यह देख नरबद को वापस लौटना पड़ा, और उसके निराश होकर लौटते ही जोधाजी फिर काहुनी चले आए। __कुछ समय बाद जब संबंधियों और बांधवों की सहायता से जोधाजी के पास काम के लायक योद्धा एकत्रित हो गए, तब यह शत्रु के अधिकृत गाँवों को लूट कर धनसंग्रह करने लगे, और जैसे-जैसे इनका धन-जन का संग्रह बढ़ता गया, वैसे-ही-वैसे १. यह मारवाड़-नरेश राव चूंडाजी का पौत्र और सहसमल का पुत्र था। २. सोजत का लक्ष्मीनारायण का मन्दिर राघवदेव ने ही बनवाया था। ३. यह राव सत्ताजी का पुत्र था । ख्यातों में लिखा है कि जिस समय नरबद मेवाड़ में था, उस समय उसकी दान-वीरता की प्रशंसा सुन महाराना कुंभाजी ने उसकी परीक्षा लेने का विचार किया। इसी से एक दिन उन्होंने अपना आदमी भेज नरबद से उसकी आँख निकाल कर भेज देने को कहलाया । यद्यपि नरबद की एक आँख युद्ध में पहले ही फूट चुकी थी, और महाराना की इच्छा भी वास्तव में उसकी दूसरी आँख निकलवाकर उसे अंधा करने की न थी, तथापि उसने तत्काल अपनी आँख निकालकर महाराना के भेजे नौकर को दे दी । इसकी सूचना मिलने पर महाराना को बड़ा दुःख हुआ। इसके बाद महाराना ने नरबद को कायलाने की जागीर दी। यह जागीर संभवतः मंडोर पर उनका अधिकार होने के बाद ही दी गई होगी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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