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________________ राव रणमल्लजी इसके बाद यह अपने पुत्र जोधाजी और कांधल को साथ लेकर गंगा और गया की यात्रा को गए और लौटते हुए कुछ दिन आंबेर में ठहर मंडोर चले आए। उस समय इनका अधिकार मंडोर, पाली, सोजत, जैतारण और नाडोल पर था । परन्तु मेवाड़ के निकट होने के कारण यह अधिकतर सोजत में ही रहा करते थे। जालोर का शासक बिहारी पठान हसनखाँ उन दिनों आसपास के प्रदेशों में उपद्रव करने लगा था । यह देख रणमल्लजी की आज्ञा से इनके सेनापति राठोड़ ऊदा ने उस पर चढ़ाई की । कुछ दिनों तक तो हसनखाँ भी किले का आश्रय लेकर राठोड़सेना का सामना करता रहा, परन्तु अन्त में रसद आदि का पूरा प्रबन्ध न हो सकने के कारण उसे हार मानकर संधि करनी पड़ी। ___ वि० सं० १४१० ( ई० सन् १४३३ ) में मेवाड़ नरेश महाराणा मोकलजी को ( उनके दादा महाराणा खेताजी की पासवान के पुत्र ) चाचा और मेरा ने मदारिया नामक स्थान के पास मारडाला, और इसके बाद ही मेवाड़ राज्य पर अधिकार कर लेने की इच्छा से चित्तौड़ के किले को जा घेरा । उस समय कुम्भाजी की अवस्था करीब ६ वर्ष की थी, इसलिये उनके पक्षवालों ने शीघ्र ही इस घटना की सूचना राव १. मुख्य उपपत्नी। २. इतिहास से सिद्ध होता है कि वि० सं० १४६५ (ई० सन् १४०८) में कान्हाजी का जन्म हुआ था, और उसी समय रणामलजी पिता की आज्ञा से राज्याधिकार छोड़कर मेवाड़ चले गए थे । वहीं पर इनकी बहन हंसाबाई का विवाह महाराणा लाखाजी के साथ हुआ । ऐसी हालत में मोकलजी का जन्म जल्दी-से-जल्दी वि० सं० १४६६ (ई० सन् १४०६ ) में हुआ होगा, और वि० सं० १४६० ( ई० सन् १४३३ ) में, मृत्यु के समय, उनकी अवस्था अधिक से अधिक २४ वर्ष की रही होगी । साथ ही यदि महाराणा मोकलजी की १७-१८ वर्ष की आयु में उनके पुत्र कुंभाजी का जन्म होना मान लिया जाय, तो पिता (महाराणा मोकलजी) की मृत्यु के समय (वि० सं० १४६० ई० सन् १४३३ में) वह ६-७ वर्ष से अधिक के न रहे होंगे । ऐसी हालत में राजपूताने के इतिहास में लिखी ये पंक्तियाँ कि-"महाराणा कुंभाने गद्दी पर बैठते ही सबसे पहले अपने पिता के मारनेवालों से बदला लेना निश्चय कर, चाचा, मेरा आदि के छिपने की जगह का पता लगते ही उनको मारने के लिये सेना भेजने का प्रबन्ध किया-" (देखो, पृ० ५६२-५६३)-ठीक प्रतीत नहीं होतीं। 'राजपूताने के इतिहास' में राज्य पर बैठते समय-महाराणा मोकलजी की अवस्था का १२ वर्ष की होना लिखा है ( देखो पृ० ५८३, टिप्पणी १) । ऐसी हालत में महाराणा लाखाजी का स्वर्गवास वि० सं० १४७८ (ई० सन् १४२१) में मानना होगा । परन्तु यदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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