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________________ मारवाड़ का इतिहास इसकी सूचना मिलने पर वि० सं० १४५३ ( ई० सन् १३६६ हि० सन् ७९८) में गुजरात के सूबेदार ज़फ़रखाँ ने आकर मंडोर के किले को घेर लिया । परंतु जब एक वर्ष और कुछ महीने घेरे रहने पर भी किले के हाथ आने की आशा नहीं दिखाई दी, तब वह चूंडाजी से आगे मुसलमानों को तंग न करने की नाम मात्र की प्रतिज्ञा करवाकर ही लौट गया । उससे निपटकर चूंडाजी ने कोटेचा राठोड़ भान को मार डाला, और उसके अधिकृत प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया । इस प्रकार इधर तो धीरे-धीरे राव चंडाजी अपना बल बढ़ा रहे थे, और उधर वि० सं० १४५५ (ई० सन् १३९८=हि० सन् ८०१) के तैमूर के हमले के कारण दिल्ली की बादशाहत कमजोर हो रही थी। इससे वि० सं० १४५६ (ई० सन् १३६६ ) में इन्होंने खोखर को हराकर नागोर पर भी अधिकार कर लिया । १. 'मिराते-सिकंदरी' में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है । परन्तु उसमें भूल से मंडोर के स्थान पर मांडू लिख दिया गया है ( देखो पृ० १३)। उस समय माँडू पर हिन्दुओं का अधिकार न होकर मुसलमानों का ही अधिकार था । 'मिराते-सिकंदरी' के लेखक ने ज़फ़रखाँ का ज़ियारत (तीर्थ-यात्रा) के लिये मांडू से अजमेर जाना लिखा है ( देखो पृ० १३)। इससे भी उपर्युक्त अनुमान की ही पुष्टि होती है, क्योंकि अजमेर मंडोर से ही नज़दीक पड़ता है। २. भान का राज्य मंडोर से ५ कोस वायुकोण में कैरू के पास था । उसके रहने की जगह आज भी 'भान का भाकर' (पर्वत ) के नाम से प्रसिद्ध है । ख्यातों में लिखा है कि एक बार जब चूंडाजी शिकार से लौटते हुए उसके यहाँ पहुँचे, तब उसने अपने घोड़ों के लिये तैयार किया हुआ हलुवा इनके सामने लाकर रख दिया । चंडाजी ने इसे अपना अपमान समझा, और एक नाई को द्रव्य देकर हजामत बनवाते समय उसे मरवा डाला । ३. खोखर के विषय में बड़ा मतभेद चला आता है । किसी ख्यात में उस समय नागोर पर खोखर राठोड़ों का अधिकार होना लिखा है, और उसमें यह भी लिखा है कि वहाँ के उस समय के शासक को चूंडाजी की मौसी (या साली) व्याही थी । किसी में उस समय वहाँ र खोकर मुसलमानों का शासन होना प्रकट किया है। फिर किसी में वहाँ पर भाँडू के शासक की तरफ से ग्वाज़ादा आज़म के हाकिम होने का उल्लेख है । परन्तु यह अंतिम बात संभव नहीं हो सकती, क्योंकि नागोर के खाँज़ादों का संबंध माँडू के शासक से न होकर गुजरात के शामक मुज़फ्फरशाह प्रथम से था, और पहले-पहल वि० २० १४६४ (ई० सन् १४०८) में मुज़फ्फर का भाई शम्सम्वाँ (दंदानी) नागोर का हाकिम बनाया गया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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