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________________ राव चूंडाजी वहाँ के प्रबंध और इनकी निगरानी के लिये ईदा (पडिहार ) शिखरा को नियुक्त करदिया । यह शिखरा बड़ा चतुर व्यक्ति था । इसलिये कुछ ही दिनों में उसने लूट-खसोट द्वारा बहुतसा माल जमाकर चारों तरफ़ अपना आतंक जमा लिया । यह दन्न धीरे-धीरे बहुत से योद्धा भी उसके पास इकट्ठे हो गए । जब इस बात की शिकायत रावलजी के पास पहुँची, तब उन्होंने स्वयं जाकर इसकी जाँच करने का विचार किया । परंतु उनके मंत्री ने, जो चूंडाजी से प्रेम रखता था, सब बातों की सूचना पहले से ही इनके पास भेजदी । इससे शिखरा सावधान हो गया, और उसने मल्लिनाथजी के आने के पहले ही अपने सैनिकों आदि को इधर-उधर भेज दिया । इसलिये मल्लिनाथजी को, स्वयं वहाँ जाने पर भी, इनके वैभव का ठीक-ठीक हाल न मालूम हो सका, और वह चूंडाजी द्वारा किए गए सत्कार से प्रसन्न होकर लौट आए । इसके कुछ दिन बाद ही चूंडाजी के सैनिकों ने एक अरब-व्यापारी के घोड़े लूट लिए । यद्यपि इससे इनका सैनिक बल बहुत बढ़ गया, तथापि इस घटना से मल्लिनाथजी अप्रसन्न हो गए। जहाँ तक हो, वहाँ से पश्चिम की तरफ के प्रदेश को हस्तगत करने का उद्योग न करना । परन्तु ( मलिनाथजी के पुत्र ) जगमाल को यह बात अच्छी न लगी, और वह चूंडाजी मे द्वेष रखने लगा । इसके बाद एक रोज़ जिस समय जगमाल और चूंडाजी दोनों भाई कुछ साथियों को लेकर शिकार को चले, उस समय मार्ग में इन्हें एक बनैला सुअर मिला, जो इनको देख शीघ्र ही एक तरफ़ को भाग चला । इस पर यद्यपि सब लोगों ने मिलकर उसका पीछा किया, तथापि खुद शिकार करने की इच्छा से जगमाल न साथवालों को उस पर प्रहार करने से रोक दिया । परन्तु जब सायंकाल हो जाने पर भी जगमाल उसे अपनी मार में न ला सका, तब चूंडाजी ने आगे बढ़ उसे मार डाला । जगमाल ने इसे अपना अपमान समझा, और वह इनसे अधिक रुष्ट हो गया। इस गृह-कलह को मिटाने के लिये ही मल्लिनाथजी ने चूंडाजी को सालोडी में जाकर रहने की आज्ञा दी थी। १. ख्यातों से मालूम होता है कि जैसे ही मंडोर के शाही अधिकारी को घोड़ों के लूटे जाने की सूचना मिली, वैसे ही उसने मल्लिनाथजी को उनके लौटा देने का प्रबंध करने के लिये कहलाया । परन्तु मल्लिनाथजी की आज्ञा पहुँचने पर चूंडाजी ने जवाब में लिख भेजा कि वे घोड़े तो में अपने गजपूत सैनिकों में बाँट चुका हूँ, इसलिये वापस नहीं ले सकता । हाँ, गेरी सवारी का घोड़ा अवश्य मेरे पास है, आप चाहें तो उसे मँगवा सकते हैं । यह उत्तर पाकर मल्लिनाथजी इनसे अप्रसन्न हो गए । परन्तु उन्होंने फिर भी इनसे कुछ न कहा, और शाही अधिकारी को कुछ दे-दिलाकर झगड़े को दबा दिया । १६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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