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________________ मंत्रीश्वर विमलशाह पर अधिकार कर लिया और राजा भीमदेव का झंडा लहरा दिया । भीमदेव का शासन घोषित किया और स्वयं दंडनायक के पद को ही सुशोभित करते रहे । इस प्रकार बिना युद्ध किये ही चंद्रावती -नगरी के सिंहासन पर आरूढ होने का सौभाग्य प्राप्त होता है । - आसपास के सामंत राजाओं ने भी उनकी प्रभूता स्वीकार करली | कैसी सज्जनता, कसी उदारता और कैसी स्वामीभक्ति । भीमदेव इनके प्राण लेना चाहते हैं फिर भी विमलशाह तो उन्हीं का नाम आगे रखते है । जैन लोग कितने स्वामीभक्त होते हैं इसका यह एक अमर उदाहरण है । विमलशाह जाति के पोरवाल थे । वे कायर नहीं "थे। उनकी नसों में क्षत्रिय तेज झलकता था । एक दिन राजसभा जमी हुई है, मंत्रीश्वर आनंद विनोद में 'समय बिता रहे हैं इतने में एक विदेशी व्यक्ति राजसभा में आकर मंत्रीवर को हाथ जोड़कर विनती करता है- महाराज ! बंगाल में रोम नामक एक नगर है । वहाँ का बादशाह हिन्दुओं का नाम सुनते ही क्रोध से आगबबूला हो उठता है और उसका प्राण लेकर ही चैन लेता है। महाराज ! उसे तो हिन्दुओ का काल ही समझिये । उसके रक्षक तो सुलतान हैं। हिन्दुओं की रक्षा का भार आप जैसे समर्थ, शक्तिशालियों को लेना चाहिये । विदेशी व्यक्ति के शब्द सुनते ही विमलशाह सतर्क हो गए - और कहने लगे अरे ! ये सुलतान फिर क्या चीज ! मालवा, मगध, नमियाड, कच्छ, मच्छ, मेवाड, कलि, कर्णाटक, लाट, भोट, भूतान 4. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034552
Book TitleMantrishwar Vimalshah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani
PublisherLabdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal
Publication Year1967
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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