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________________ ४. मालवण में पुन: निवास 3 अब विमलशाह को सारी बाते समझ में आ गई। उनकी आँखें खुल गई । राजा किसी भी उपाय से मेरा अन्त करना चाहता है और इसी उद्देश्य से उसने शेर को आजाद किया, पहलवानों को बुलाया तथा इनमें अपना तव्य सफल न होता देखकर अब रुपया माँगने की बात निकाली है । मुझे लगता है कि कान के कच्चे महाराज को अवश्य ही किसी ने भरमाया है । बस उसी समय से मंत्रीश्वर सावधान बन गये और शीघ्र ही अपने निवास स्थान पर आकर वहाँ से विदा लेने की तैयारी की । १८ वण के लोग, १० हजार पैदल, पाँच हजार अश्वारोही, हाथी, रथ और पांच हजार अश्वों को सजाया । उँटों पर निशान - डंके रक्खे । १६०० ऊटों पर सारा स्वर्ण लादा । बड़े परिवार के साथ पाटण छोड़ते समय आखिरी सलाम करने के लिये विमलशाह राजा भीमदेव के पास जाते हैं और उन्हें स्पष्ट शब्दों में कह देते हैं महाराज ! जितना परेशान आपने मुझे किया है उतना और किसी को न करें । ऐसा कहकर प्रणाम कर मंत्रीश्वर पाटण की सीमा को छोड़कर आगे बढ़े और मालवण जाकर रहे । वहाँ उन्होंने राजकीय चिह्न धारण किये। इस अवधि में. १८०० गाँवों का स्वामी चंद्रावती का राजा धंधु खड़ाली आया था, पर विमलशाह की रणभेरी का बाद सुनकर पृथ्वी पर मूर्छितः होकर गिर पड़ा। बिदा लडे विमलशाह ने प्रारंभ में ही चन्द्रावती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034552
Book TitleMantrishwar Vimalshah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani
PublisherLabdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal
Publication Year1967
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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