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________________ * दीक्षा ८३] वर्तमान में महात्मा गान्धी का उदाहरण पर्याप्त हैएकाकी महावीर के लिये इन्द्र म• आये सब वर्तमान समुदाय के लिए एक सामान्य देव भी नहीं आता; इससे संसार को यह बोध लेना चाहिए कि स्वयं सशक्त बनें; परन्तु पर विभूति से अपने को भूषितन समझ ; तात्पर्य यह है कि महावीर की तरह स्वयं शक्ति उत्पन्न करो और यह कर्तव्य-परायणता और कार्यान्वितता से होसकती है. (गौशाला का संयोग) बौद्ध धर्म तो छः मत प्रवर्तकों में से मंखली गोशालक दूसरा मत प्रवर्तक था, ऐसा स्वीकारता है ; पर जैन धर्म इसको भगवान् महावीर का स्वयं बना हुवा शिष्य मानता है. राजगृही नगरी के नालन्दे पाड़े में भगवान् महावीर का द्वितीय चतुर्मास था; मास क्षमण की तपस्या थी, गोशालक मिक्षावृत्ति करता करता वहाँ पहुँच गया, पारणे की महिमा देखकर खाने के लोभ से स्वयं दीक्षा लेकर भगवान् का शिष्य बन गया और उनके साथ फिरने लगा. एक वक्त जगत्पूज्य सुवर्णखल ग्राम में पधारते थे, मार्ग में गोपालक क्षीर पका रहे थे, गोशाला ने पूछा ये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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