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________________ ८२] * महावीर जीवन प्रभा *. उसने रेति पर उत्तम चिन्हों को देखकर सोचा 'इधर से कोई एका की वक्रवर्ती गया है, उसकी सेवा से मुझे अपूर्व लाभ होगा, उनके कदम बकदम वह उनके निकट गया, देखता क्या है कि एक अवधूत नग्न फकीर जा रहा है, उसके गात्र ढीले पड़ गए, अपनी विद्या पर भारी घृणा पैदा हुई, अपने ग्रन्थो को नदी में फैंक देने की तैयारी में था कि इन्द्र एकदम वहाँ पहुँच गया, प्रभु को वन्दन कर पुष्प शास्त्री को कहा-खेद मत करो, तुमारी विद्या सत्य है, ये सुरासुर और इन्द्र नरेन्द्र से पूजित तीन लोक के नाथ तीर्थंकर देव हैं, इनकी सेवा तो ऐहिक और पारलौकिक सुख देने वाली है , ऐसा कहते हुए इन्द्र ने उसे काफी धन देकर सन्तुष्ठ किया, इन्द्र और पुष्प दोनों ही प्रसनता पूर्वक अपने स्थान पर चले गये. प्रकाश- यह लोकोक्ति है कि 'जमात करामात' यानी समुदाय का प्रभाव पड़ता है, पर महावीर देव ने इस पराश्रित और सम्मिलित कर्म प्रभाव को अप्रमाणित ठहराया और यह सिद्ध कर दिखाया कि अपनी ही शक्ति अपने प्रभाव को बढाती है, इसलिए पारकीय शक्तियो से न फुल कर स्वयं शक्तिशाली बनो, व्यक्तित्व प्रभाव एक दिव्य प्रकाश है और समाजिक प्रभाव एक सामान्य प्रकाश है और असक्तों के लिए ही उसकी रचना हैShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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