SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * दीक्षा * [ ६३ पर बैठे हुए नन्दिवर्धन नरेश चल रहे थे; इस तरह समारोह के साथ दान देते हुए वर्धमान बड़े उमंग से पधार रहे थे, लाखों नेत्र जिसको देख रहे थे, लाखों मुख स्तुति करते थे और लाखों हृदय जिसका चिन्तन करते थे तमाम लोग इस प्रकार बोलने लगे अहो क्षत्रियकुल- दिवाकर ! आप जयवन्त रहो, आप का कल्याण हो, अखण्ड ज्ञान-दर्शन और चारित्र से अजेय इन्द्रियों पर और मन पर विजय करो, तमाम कष्टों को बड़ी वीरता से सहन करो, निर्भयता पूर्वक संयय धर्म का पालन करो, उत्कट तप द्वारा राग-द्वेष शत्रुओं से संग्राम कर अष्ट कर्मों का मर्दन करो और शुक्ल - ध्यान से त्रैलोक्य मण्डप में विजय पताका फहराओ, अन्त में केवल ज्ञान प्राप्त कर परमपद मोक्ष पधारो. जय हो ! आप की विजय हो ! लाखों उंगुलियों से बताये जाने वाले परमात्मा नरनारियों का नमस्कार स्वीकार करते हुए, सर्व ऋद्धि और कान्ति से शोभित, चतुरंगी सेना सहित, इन्द्र - महेन्द्र-देवदेवाङ्गना - नर-नारियाँ और अन्य विभूतियाँ सहित ज्ञातवनखण्ड में पधारे, वहाँ पर अशोक वृक्षके नीचे शीबिका रक्खी, उसमें से वर्धमान कुमार ने उतर कर तमाम आभूपण वैश्रवण देव को दिये, उसने गोदुग्धासन से श्वेत वस्त्र में ले लिये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy