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________________ ४२] * महावीर जीवन प्रभा * पर्वत पण लेकर कलशारादि आठ सूतिगृह ( Maternity-Home ) बनाया- मेषंकरा आदि आठ ने उर्ध्व लोक से आकर वन्दन कर सौगंधित पुष्प वृष्टि की- नन्दोत्तरादि आठ ने पूर्व दिशा के रुचक पर्वत से आकर मुखावलोकन के लिए दर्पण लेकर सन्मुख खड़ी रहीं- समाहारादि आठ दक्षिण रुचक प्रदेश से आकर मंगल कलश से भगवन्त और उनकी माता को स्नान कराती हैं- इलादेवी आदि आठ पश्चिम रुचक पर्वत से आकर पवन डालने के लिये पंखा लेकर सामने खड़ी रहती हैंअलम्बुसादि आठ उत्तर रुचक पर्वत से आकर चामर ढालतीं हैं- विचित्रादि चार कुमारियाँ दीपक धारण कर सन्मुख खड़ी रहती हैं- एवं रूपा आदि चार दिक्कुमारियाँ रुचक द्वीप के मध्य दिशा से आकर गर्म-नाडी को छेद कर एक गर्त में रखती हैं। ऊपर रत्नमय चौतरा बनाकर उस पर दोप बोतीं हैं , पश्चात् सूतिगृह से दक्षिण-पूर्व और उत्तर दिशा में क्रमशः तीन कदली-गह बनाती हैं, उनके अन्दर सिंहासन स्थापन करती हैं, पहिले में माता और पुत्र को सिंहासन पर बिठा कर दोनों के शरीर पर सुगंधित तैल का मर्दन करती हैं- दुसरे में दोनों को स्नान कराती हैं , चन्दन का लेप करती है और सुन्दर वस्त्र पहनाती हैं- तीसरे में अरणी की लकड़ी से अनि उत्पन्न कर चन्दन से शान्तिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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