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________________ ३८] * महावीर जीवन प्रभा * चन्द्र था, कर्क लग्न के पंचमांश में वृहस्पति था, मीन लग्न के सत्तावीसवें अंश में शुक्र था और तुला लग्न के बीसवें अंश में शनि ग्रह था; अर्थात् सर्व उच्चस्थान पर थे और जिस समय समस्त दिशाएँ निर्मल थीं, तमाम शुकुन जयकारी थे, समग्र प्रदेश हर्षित थे, वसन्त अपनी युवा अवस्था में झूल रहा था, उस समय चैत्र शुदी तेरस सोमवार के दिन उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में मगध देशान्तरगत क्षत्रीयकुण्ड नगर में सिद्धार्थ नृपेन्द्र के कुल में त्रिसला महारानी की रत्नकूक्षि से मध्यरात्री में विश्ववन्य-जगत्पूज्य भगवान् महावीर प्रभु का जन्म हुवा था. प्रकाश-उत्तम पुरुषों के जन्म समय सहज ही ग्रह नक्षत्रादि उच्च बनजाते हैं, ज्योतिष शास्त्र भी केवल ज्ञान का एक अंश है, जन्म कुण्डली से जीवन काल का सारा पता चल जाता है और इससे पुण्य-पाप का नाप मालूम हो जाता है. जिस जिस समय घोर हिंसा से या अत्याचारों से संसार में उपद्रव पचता है, उस उस समय एक संरक्षक पुरुषोत्तम का जन्म होता है- कितने ही धर्म शास्त्र वैसे टाइम में संहारक पुरुषोत्तम का जन्म मानते हैं; परन्तु यह न्याय संगत नहीं है , संहारक दुनिया का भला नहीं कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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