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________________ * गर्भावस्था * ( करुणा - शोक - प्रतिज्ञा - हर्ष ) [२३. १ करुणा - भगवान् ने गर्भ में रहे हुए एक वक्त ज्ञान द्वारा विचार किया कि गर्भ के हिलने से, चलने से - कम्पने से माता के उदर में महति व्यथा होती है, इससे मैं स्तब्ध रहूँ, यह निश्चय कर पेट के एक हिस्से में प्रभु निश्चल रहे. २ शोक - गर्भ के न हिलने से त्रिसला माता एकदम घबड़ाकर बोलने लगीं- अहो ! मेरा गर्भ किसी दुष्ट देव ने हरलिया है, अथवा गर्भ च्यवगया है, मरगया है, गल गया है, गिरगया है या स्थानभ्रष्ट होगया है !!! पहिले मेरा गर्भ हिलता था, चलता था, स्फुरता था, अब कुछ नहीं होता है, मेरे गर्भ को कुशल नहीं है त्रिसलादेवी का दिल भँग होगया, भारी खेद हुआ, शोक समुद्र में डूब गई; मुंह नीचा कर, गाल पर हाथ धर, दृष्टि जमीन पर रख कर सोचने लगी- अगर सचमुच ही मेरा गर्भ सकुशल नहीं है तो पृथ्वी पर मेरे जैसी पापिनी - अभागिनी कोई नहीं है पण्डितजनों ने सत्य ही कहा है कि- अभागियों के घर चिन्तामणि रत्न नहीं ठहर सकता, दरिद्रियों के गृह में निधान प्रकट नहीं होता, मरुधर में कल्पवृक्ष नहीं उगता पुण्यहीनों को अमृतपान की इच्छा पूरी नहीं हो सकती; हा देव ! तुझे धिक्कार हो, तेने ऐसा क्या किया ? मेरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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