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________________ २२] * महावीर जीवन प्रभा * वैसे स्थानों से धन ला ला कर सिद्धार्थ नृपेन्द्र के भण्डार भरे हैं कि उनके स्थापक, उनका कुटुम्ब, गौत्रीय, नोकर, चाकर और सर्व वारिशदार नष्ट होगये हों, जिनका नामोनिशान तक मिट गया हो, इस तरह सोना-चान्दी-मोहरें रत्न-माणिक-मोति-हीरा-पन्नादि जवाहिरात और जेवर वगैरः द्रव्यों से अमाप धनराशी बढ़ा दी गई- इसही प्रकार गेहूँ-चावल-मृग-चना-पटरादि धान्यों की राजेन्द्र के घर पर वृष्टि की. प्रकाश-"भाग्यवान् के भूत कमा" यह कहावत यहाँ चरितार्थ होगई, एक तो पहिले ही लक्ष्मी का आधिपत्य था और फिर बिना प्रयत्न पुण्य योग से देवों ने भण्डार भरदिये, आप को पता है ? ऐसा क्यों हुवा ? नहीं तो सुनियेभवान्तरों के दान कने लाभानराय को नष्ट करदिया, इसही से लक्ष्मी रेलमठेल होगई और भूखों को भोजन कराया, इससे अन्न की वृष्टि होगई, यह सब गर्भ में विराजमान् महावीरदेव का प्रभाव था. आप अपनी परिस्थिति को सोचिये, कैसी अन्ता वेदना हो रही है। आप इससे दान-धर्म का बोध पाठ सोखिये और यथाशक्य आचरणा करिये महा पुरुषों का कथन है कि अन्न-जल समान कोई दान नहीं है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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