SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४] * महावीर जीवन प्रभा * रंग के रंग में बड़ा अन्तर है, सच्चाई कम और ढोंग ज्यादा है टाप टीप करके अपना मतलब निकालने का प्रयत्न होता है; ऐसी श्रद्धा और भक्ति वाले नितान्त धूर्त और ठग हैं, विश्वास के काबिल नहीं रहते; इसलिए पाठकों को निवेदन है कि यदि आप भी इस श्रेणि में हो तो फौरन स्तिफा ( Resign ) देदेना और सरल-सत्यमार्ग का अत्रलम्बन कर कौणिक भूपेन्द्र की तरह निःस्वार्थ श्रद्धावन्त और भक्तिवन्त बनना, इससे दुनिया में कुछ योग्य बन सकेंगे और विश्वास पात्र की कोटि में पहुँच सकेंगे. ( गोशालक का उपद्रव ) स्वतः बना हुवा भगवान् का शिष्य गौशालक तीर्थकर-सर्वज्ञादि का डौल करता हुवा भ्रमण कर रहा था, लाखों जनों को मिथ्यात्व-गर्त में पटक रहा था, महावीर देव का कट्टर द्रोही था, एक वक्त वह सावत्थी नगरी में आया था, इधर भगवन्त भी विचरते हुए वहाँ पधार गए, इससे यह जाहिर हुवा कि इस नगरी में दो तीर्थकर हैं, आश्चर्य चकित होकर गौतम स्वामी ने परमात्मा को पूछाभगवन् ! दूसरा तीर्थकर कौन है ? उत्तर मिलायह तीर्थकर नहीं है। यह शरवण ग्राम का मखलीसुभद्रा का पुत्र गोबहुल ब्राह्मण है, गायों की शाला में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy