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________________ * कैवल्य * [१२३ कर्मचारी-नौकर-चाकर आदि सब लोग थे, भारी दबदबे के साथ भगवान् को वन्दनार्थ गया, अत्यन्त उत्साह और भक्ति से भगवन्त को अभिवन्दन किया, स्तुति की, देशना सुनी, चित्त प्रसन्न होगया, धर्मलाभ प्राप्त कर वापस चला गया. • प्रसङ्ग वश यह भी बता देना जरूरी है कि भगवन्त के साथ कैसे कैसे साधु थे- घर में अढलग द्रव्यवान् , बहु-कुटुम्बी, इज्जत-आबरू ( Credit-Position ) वाले पारस्परिक प्रेम वाले, शरीर-सम्पत्ति के स्वामी थे, यहाँ पर परम वैराग्यवान्-क्षमावान-महात्यागी-दीर्घ तपस्वी और महा संयमी थे- कौणिक का और मुनियों का विशेष विवरण औत्पातिक ( उववाई ) सूत्र धर्मशास्त्र से जान लेना. प्रकाश-अहा! कितनी बढिया गुरु भक्ति, कितनी सुन्दर श्रद्धा और कितना उत्साह . और उमंग, कितनी गुणप्राहकता और किस कदर धर्म में लयलीन, कितनी निस्वार्थ भक्ति और परम सेवा की अभिलाषा, गुरुदेव के स्वास्थ्य का कितना खयाल रखता था, जिसके मुकाबिले में कोई सेम्पल नहीं है- आज की गुरु भक्ति और श्रद्धा तो दिखाव मात्र है, जहाँ तक स्वार्थ पहुँचता है वहीं तक श्रद्धा-भक्ति और आज्ञा का पालन है, बाहारी और अन्तShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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