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________________ ९०] * महावीर जीवन प्रभा * यह स्पष्ट है . तपस्या दो दृष्टि से की जाती है- स्वास्थ्य रक्षा के लिए और आत्मोनति-आत्मशुद्धि(Self-purification) के लिए. तप से जठराग्नि तेज होती है, उससे पाचन अच्छा होकर सप्त धातुएँ (१ हड्डी २ मांस ३ रुधिर ४ वीर्य ५ त्वचा ६ मजा ७ नसें ) पुष्ट होती हैं. सुव्यवस्थित रहती हैं और निरामय बनती हैं- वैद्यक शास्त्रों नेभी लिखा है कि " लङ्घनं खलु औषधं " यानी अस्वस्थ अवस्था में लंघन करना औषध है, इधर यह भी कह दिया कि 'जिणे भोजनं' पानी आगे का पच जाने पर नया भोजन करना चाहिए; इन सब बातों से यह साफ है कि स्वास्थ्य के लिए तपस्या एक कीमिया चीज़ है . इस हृद्द तक तो सब लोग मानने को तैयार हैं; पर आत्मोन्नति में साधक नहीं हो सकती बजाय इसके घातक है और इसमें कई एक विचारणीय दलिलें पेश भी करते हैं ; मगर मुझे स्पष्ट कह देना चाहिए कि वे उस तेह तक नहीं पहुँच सके हैं, इसही लिए उनका ऐसा मानना है. देखिये ___ तपस्या करने का मूल आशय सिद्ध भगवन्तवत् 'निराहारी' बनने का है, आत्मा का असली स्वरूप यही है, आहार. सबसे पक्की उपाधि है, संसार की सारी घटमाल इसके पीछे है, ज्यों ज्यों इसका प्रसंग कम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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