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________________ ( १२ ) फल है अन्यथा इस धर्म का भी अन्यान्य अनेकों धर्मों के सदृश नामाऽवशेष रह जाता। . इत्यादि “महाजन संघ" संस्था स्थापित करने में जो लाभ आचार्य श्री ने देखे थे वे सबके सब आज महान उपयोगी सिद्ध हुए दीख रहे हैं। : पर दुःख है कि कई अज्ञ लोग वर्तमान "महाजन संघ" की पतित दशा को देख यह सवाल कर उठते हैं कि पूर्वाचार्यों ने क्षत्रिय जैसी बहादुर कौम को महाजन बना कर उसे डरपोक बना दिया, इसी से ही जैन धर्म का पतन हुआ है इत्यादि । . परन्तु यह सवाल तो वही कर सकता है जिसको कि इतिहास का जरा भी ज्ञान नहीं है। यदि ऐसा न होता तो वे स्वयं अपनी बुद्धि से ही सोच सकते थे कि जो लोग मांस मदिरा और व्यभिचारादि का सेवन कर नरक में जाने के अधिकारी बन रहे थे उनको सदाचारी एवं जैन बना कर स्वर्ग मोक्ष का अधिकारी बनाया तथा यह केवल उन लोगों के लिए ही नहीं पर उनकी वंश परम्परा जहाँ तक जीवित रहेगी वहाँ तक उनके लिए भी है। ऐसी दशा में भला उन आचार्यों ने इसमें बुरा क्या किया ? उन आचार्यों का तो उल्टा महान उपकार मानना चाहिये परन्तु जो उपकार के बदले अपकार मानते हैं उनके सिवाय वज्र-पापी ही कौन हो सकता है ? ____ यदि वे प्राचार्य, उन क्षत्रियों को जैन महाजन नहीं बनाते तो वे हाथ में अस्त्र लेकर हरिण, लोमड़ी और मच्छियों आदि की शिकार करते । और उन्हें महाजन बना दिया तो वे राजतंत्र या बड़े बड़े व्यापार व वर्तमान में दुकान में बैठ कर व्यापार कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034543
Book TitleMahajan Sangh Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1937
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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