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________________ । ११ ) बनाना वे पतन का प्रारंभ समझते थे । पर किसी संगठित संस्था के अभाव में वे नये जैन शेष रहे हुए आचोर-पतित अजैनों की संगति कर भविष्य में पुनः पतित न बन जाय, इस कारण से भी एक ऐसी संस्था की आवश्यकता थी जिसकी सूरिजी ने पूत्ति की। (४) ऐसी संस्था के होने पर अन्य स्थानों में अजैनों को जैन बना कर संस्था में शामिल कर लिया जाय तो नये जैन बनाने वालों को और बनने वालों को अच्छी सुविधा रहे, इस लिए भी ऐसी संस्था की जरूरत थी। (५) ऐसी संस्था होने से ही संगठन बल उत्तरोत्तर बढ़ता गया और संगठन बल से ही धर्म या समाज उन्नति के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है । अतः ऐसी संस्था होना जरूरी है। (६) संस्था का ही प्रभाव था कि जो महाजन संघ लाखों की तादाद में था वह करोड़ों की संख्या तक पहुँच गया। (७) ऐसी सुदृढ़ संस्था के अभाव से ही पूर्व आदि प्रान्तों में जो लाखों करोड़ों जैन थे वे जैन धर्म को छोड़ कर मांसाहारी बन गए । यदि उस समय वहां भी ऐसी संस्था होती और उसका कार्य ठीक तौर पर चलता तो आज “सराक" जैसी जैन धर्म पालन करने वाली जातियों को हम हमारे से बिछुड़ी हुई कभी नहीं देखते, अतएव ऐसी संस्था का होना अत्यन्त आवश्यक था। (८) संस्था का ही प्रभाव है कि आज "महाजन संघ" भले ही अल्प संख्यक हो, पर वह जैन धर्म को अपने कंधे पर लिए समप्र संसार के सामने टक्कर खा रहा है अर्थात् उसे जीवित रख सका है। यह भी "महाजन संघ" बनाने का ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034543
Book TitleMahajan Sangh Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1937
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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