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________________ ( २५ ) और इनके पाजनेके विषयमें जो सब कठोर नियमादि समय समय पर अनुभवी बहुदर्शी प्राचार्यों ने बनाये हैं उन पर पूर्ण ध्यान रखते हुए वे अपना संयम जीवितव्य निर्वाह करते हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी मत कोई नया सम्प्रदाय नहीं है। परन्तु वह श्रादि अथवा मूल जैनधर्म ही है ! जैनधर्मका जो आदि स्वरूप था वह हजारों वर्षों के पड़ोसी धर्मों के संसर्ग या प्रभावके कारण इतना बदल गया था कि आज जब उसका असली स्वरूप सामने लाया जाता है तो लोग उसे अनोखा धर्म समझ कर उसका मनमाना अनुचित विरोध करने लगते हैं । परन्तु यह कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। जैनधर्ममें समय तथा वातावरण के प्रभावसे जो विकार पाया लोग धीरे-धीरे उससे इतने परिचित एवं अभ्यासी हो गये कि आज उनके लिए जैनधर्मके असली और विकृत रूपमें भेद करना भी मुश्किल हो गया। जब धर्म अपने उच्च स्थानसे गिरना शुरू हुआ और अन्य पड़ोसी धर्मो ने जोर पकड़ा तो कुछ जैन लेखक या व्याख्याकारोंने जैन सूत्रोंके पाठोंका अर्थ बदलना शुरू किया और उनका ऐसा अर्थ दुनियाके सामने रखा जो कि जैनधर्मसे खिलाफ और अन्य धर्मों के सिद्धान्तोंसे मिलता जुलता था । इस प्रकार सैकड़ों वर्षोंके परिवर्तनसे आते आते इतना विकार पाया कि जैनधर्मके असली स्वरूप और बादके स्वरूपमें कोसोंका अन्तर पड़ गया। अनेक महामना धर्मधुरन्धरोंने जैनधर्मके सत्य स्वरूपके खोजमें अपना हाथ लगाया और आंशिक सफलता भी प्राप्त की । संत भीखणजी भी इन्हीं महान पुरुषों मेंसे एक थे । वे सबसे बादमें हुए परन्तु सबसे अधिक परिश्रम इन्होंने किया और पूर्ण सफलता भी इन्हींको मिली । इनका मत कोई नया धर्म नहीं है बल्कि शास्त्रोक्त जैनधर्मसे पूर्ण समन्वय या एकरूपता रखता है। इस प्रकार जैनधर्मके सनातन स्वरूपसे उसका पार्थक्य न होते हुए भी जैनधर्मके जो अन्य सम्प्रदाय हैं और जिनका अस्तित्व इससे प्राचीन है उनके साथ कई खास बातोंमें इसका मतभेद हो जाता Shree Sydharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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