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________________ ( १४ ) किसी भी निष्पक्ष विद्वानकी प्रशंसा प्राप्त किये बिना नहीं रह सकता । इनकी फुटकर रचनाएँ भी कम नहीं हैं। जीवन चरित्र लिखने में तो आप और भी अधिक सिद्धहस्त थे । 'भिक्षुयश रसायन' तथा 'हेम नव रसो' नामक जीवन चरित्रमें आपने अपनी प्रतिभाका अपूर्व परिचय दिया है । यद्यपि ये पुस्तकें मारवाड़ी भाषा में है फिर भी यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि हिन्दी साहित्य में ही नहीं पर दूसरी भाषाओं के साहित्य में भी ऐसे कलापूर्ण जीवन चरित्र कम ही मिलेंगे। श्री जयाचार्यने धर्मका अच्छा प्रचार किया था । उनके शासन कालमें १०५ साधू और २२४ साध्वियां दीक्षित हुई थीं । आपका देहावसान ७८ वर्षकी अवस्था में भाद्र बदी १२ सं० १६३८ को जयपुर में हुआ। आपने सर्वथा योग्य समझ स्वामीजी श्री मघराजजीको पाटवी चुन लिया था । पंचम आचार्य — पांचवें आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री मघराजजी स्वामीका जन्म बीकानेर रियासत के बिदासर गांवमें चैत सुदी ११ सं० १८६७ को हुआ था। उनकी दीक्षा भी बाल्य कालमें ही लाडनू में हुई थी । जयपुर में वे श्राचार्य पद पर आसीन हुए थे । उनके पिताका नाम पूरणमलजी बेगवाणी और माताका नाम वन्नांजी था । उनका देहान्त ५३ वर्ष की अवस्था में चैत वदी ५ सं० १६४६ में सरदारशहर में हुआ। उन्होंने ३६ साधू और ८३ साध्वियोंको प्रवर्जित किया । आपने अपने पट्टलायक स्वामीजी श्रीमाणकलालजीको निर्वाचित किया था । षष्ठ श्राचार्य — छट्ठे आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री मानिकलालजी स्वामीका जन्म जयपुरमें सं० १६१२ की भादवा बदी ४ को हुआ था। उनकी दीक्षा लाडनूं में छोटी उम्र में ही हुई थी और वे सरदारशहर में आचार्य बनाये गये थे । उनकी माताका नाम छोटांजी और पिताका नाम हुकमचन्दजी भरड़ श्रीमाल था । उन्होंने केवल १६ साधू और २४ साध्वियों को ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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