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________________ ( १३ ) संम्वत् १९०८ को रावलियाँ में हुआ। आपने स्वामीजी श्री जीतमल्लजीको भावी आचार्य के पदके लिये मनोनीत किया था । चतुर्थ श्राचार्य प्रख्यात जीतमल्लजी स्वामी चतुर्थ श्राचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री जीतमलजी खामीका जन्म सं० १८६० में आसोज सुदी १४ को मारवाड़के रोहित ग्राम में हुआ था। उनके पिताका नाम आइदानजी गोलेछा और माताका नाम कलुजी था। इनकी दीक्षा नव वर्ष की उम्र में जयपुर में हुई थी । भीख जीको छोड़ कर अन्य सब आचार्योंकी तरह ये भी बाल ब्रह्मचारी थे और बाल्यावस्था में ही तीव्र वैराग्यसे अपनी माता तथा दो भाईके साथ दीक्षा ली थी। जीतमलजी महाराज असाधारण विद्वान् और प्रतिभाशाली कवि थे । केवल ग्यारह वर्षकी अवस्था से ही उन्होंने कविताएँ रचना करनी शुरू कर दी थी। उनकी कविताओंकी संख्या तीन लाख गाथाओं के लगभग है । इनका शास्त्रीय ज्ञान अगाध और आश्चर्यकारी था। ऐसा कोई भी आध्यात्मिक विषय न था जिस पर वे लिख न गये हैं । स्वतंत्र रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने जैन सूत्रोंका पद्यानुवाद भी किया था। उनके अनुवाद में भाषाकी सरलता, अर्थकी स्पष्टता, मूल भावोंकी रक्षा तथा व्यक्त करनेकी सरलता से आश्चर्यकारी पांडित्य झलक रहा है। भगवती सूत्र जैसे विशाल तथा सूक्ष्म रहस्यपूर्ण प्रन्थका अनुवाद करना कम विद्वत्ताका काम नहीं हो सकता । इसी प्रकार उत्तराध्ययन, दशवैकालिक सूत्र आदि शास्त्रोंका भी उत्तमता पूर्वक अनुवाद किया है। ये अनुवाद उनकी असाधारण विद्वत्ताat चिरस्थायी कीर्तियाँ हैं । इन अनुवादों के अतिरिक्त उनकी मूल रचनाएँ भी कम नहीं हैं। 'भ्रम विध्वंसनम्', 'जिन श्राज्ञामुख मण्डनम्', 'प्रश्नोत्तर तत्त्ववोध', आदि ग्रन्थ तात्त्विक विषयोंकी बडी उत्तम पुस्तकें हैं। . एक एक विषयके सारे शास्त्रीय विचार और प्रमाणको एक जगह एकत्रित करने में उन्होंने जो अथाह परिश्रम किया है वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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