SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १ ) न्याय तथा तार्किक दृष्टिसे उन्होंने दान दया पर सुन्दर दालें रची, व्रत अव्रतको खूब समझाया। नव तत्वों पर एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी, श्रावकके व्रतों पर नया प्रकाश डाला। शील ( ब्रह्मचर्य ) के विषय पर महत्व पूर्ण रचना की। इस प्रकार क्रमशः उनके विचार जनताके हृदय पर असर करते गये। साध्वाचार पर ढालें रच कर शिथिलाचारको हटानेका प्रचार किया और सच्चा साधुत्व क्या है इसका अपने चरित्रसे लोगों के सामने उदाहरण रखा। इस प्रकार उन्होंने अपने मनकी सारी विचार धाराको शास्त्रीय मतसे एकी करणकर दिखाया और अपने मतकी जड़को पुष्ट कर दिया। जो मत केवल १३ साधु और श्रावकों को लेकर शुरू हुआ था वह आज फैलता-फैलता दो लाखकी संख्या तक पहुँच गया है। श्राज मारवाड़, मेवाड़,बिकानेर, हरियाना, जयपुर, बंगाल, आसाम, पंजाब, मालवा, उडिष्य, मद्रास, महीशूर,मध्यप्रदेश, कच्छ, खानदेश, गुजरात और बम्बई प्रभृति सभी स्थानोंमें इस मतके अनुयायी हैं। ___भीखणजीके धर्म प्रचारके क्षेत्र मारवाड़, मेवाड़ ढाड़, तथा कच्छ आदि प्रदेश ही रहे । कच्छ प्रदेश में स्वयं स्वामीजीका बिहार न हुआ था परन्तु वहां उनके मतका प्रचार श्रावक टिकम डोसीके द्वारा हुआ था। भीखणजीने अपने जीवन कालमें ४६ साधु तथा ५६ साध्वियोंको प्रवर्जित किया था जिनमेंसे २० साधु तथा १७ साध्वियाँ साधु मार्गकी कठोरता-सहनमें असमर्थ हो गण बाहर हो गयी थीं। श्रावक तथा प्राविकाओंकी संख्या भी बहुत बढ़ गई थी। इस प्रकार स्वामीजी अपने मत प्रचारकी सफलता अपने जीवन कालमें ही देख सके थे । स्वामीजीका देहावसान भादवा सुदी १३, संम्वत् १८६० को हुधा था। उन्हें अन्त समय तक जागरूकता रही। अपने अन्तिम दिनों में उन्होंने गण समुदायके हितके लिये जो उपदेश दिया वह स्वर्णाक्षरोंमें लिखने योग्य है। Shree Sud armaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy