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________________ श्री जैन शासन संस्था ३५] संबोध प्रकरण, श्राद्धविधि, दर्शनशुद्धि, द्रव्यसप्ततिका विगेरे ग्रंथोंथी जाणी शकाय छ । (३) ज्ञान द्रव्य (त्रीजु क्षेत्र) ज्ञान द्रव्य व्याख्या : ज्ञान पूजननी रकम, ज्ञान भक्ति माटे आवेल रकम, आगम शास्त्रों विगैरेनी भक्ति माटे बोलायेल बोलीनी रकम, कोई पण तपमां श्रुतज्ञाननी भक्ति निमित्त उत्पन्न थयेल द्रव्य, प्रतिक्रमण सूत्रनी बोली आदि ज्ञान भक्तिनु द्रव्य ज्ञानद्रव्य गणाय । उपयोग (१) आगमशास्त्रादि धार्मिक पुस्तको, अध्ययनादि माटे विविध साहित्यादिना पुस्तको लखाववा, छपाववा, कागलो अने तेना साधनो खरीदवा, लहीआओने (जैन शीवायना) आपवामां अने साहित्यना रक्षणमा खरची शकाय । (२) साधु साध्वीओने भणाववामां (अध्ययनमा) जैनेत्तर पंडितोने पगार महेनताणुं के पुरस्कार आपी शकाय । (३) ज्ञानखातीनी रकमोर्माथी ज्ञान भंडार करी सकाय । (४) गृहस्थीए जो पोतानुं द्रव्य ज्ञाननी वृद्धि रक्षादिना कोई पण कार्यमां आपेल होय तेमां थी जैनोने पण पगार के महेनताणुं आपो शकाय पण ज्ञान द्रव्यमां थी श्रावक श्राविकाने पगार के महेनताणुं न आपी शकाय । (५) ज्ञानद्रव्य थी बंधायेल मकानमां, ज्ञानभक्ति, पठन पाठन, पूजाआदि कार्यो थई शके पण साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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