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________________ श्री जैन शासन संस्था परिशिष्ट ३. चुनाव पद्धिति के भयंकर नुकसान का उपसंहार १. सत्ता लोलुपता, प्रचार और आर्थिक बल से चुनाव जोता जाना स्वाभाविक है । इससे सच्चे, प्रामाणिक, मूक सेवा करने वाले योग्य व्यक्ति की कार्यशक्ति का लाभ संघ को नहीं मिलता है । ३० } २. चुनाव पद्धति में आने वाले को अपने निजी अभिप्राय से वोट देने का अधिकार मिलता है। आज्ञा प्रधानता अर्थात् सुदेव, सुगुरु, सुधर्म को आज्ञा, शिस्त, मर्यादा की अधीनता नहीं रहती है। ३. चुनाव में अधिक मत प्राप्त करने वाले भले धार्मिक परम्परा शास्त्र ज्ञान आदि से अज्ञात हों तो भी उनको काम करते का अधिकार प्राप्त हो जाता है और जानकार, योग्य व्यक्ति का अनुभव - कथन ध्यान में भी नहीं लिया जाता है । ४. जैन शासन में ऊपर से आज्ञा चली आती है जैसे अरिहंत तीर्थंकर एक, उनकी आज्ञा आचार्य उपाध्याय साधु हजारों लाखों करोड़ों की संख्या वाले मानते हैं । आचार्य एक, उनका कथन करोड़ों श्रावक, धाविकाओं को महाजनों को, मान्य होता है । जब आज की बहुमती में प्रमुख के एक बाजु ४९ सच्ची बात करने वाले होवे और एक तरफ ५१ मत उस बात के विरूद्ध हो तो भी बहुमत के सिद्धान्त अनुसार प्रमुख को असत्य बात के आधीन होना पड़ता है । ५. समूह, संघ और समाज में अनुभवी, जानकार, सूक्ष्मता पूर्वक दीर्घ दृष्टि से समझने वालों की बहुत ही कम संख्या होती है । बहुमतवाद के चुनाव में ऐसे अनुभवी, दीर्घद्रष्टा भावी हिताहित सोचने वालों को मौन रहना पड़ता है। इससे सच्ची बात का पालन प्रायः कम हो जाता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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