SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री बंन शासन संस्था माफिक कार्य करने वाले सेवाभावी सद्गृहस्थ हैं । वहीवटदारों को शास्त्राज्ञा और संघ की मर्यादा को बाधक हो, ऐसा कुछ भी करने का अधिकार नहीं है और सरकार को भी श्री संघ का हक नष्ट कर वहीवटदारों को ही उन संस्थाओं का सीधा मालिक मानकर उनके द्वारा अपना हक स्थापित करना योग्य नहीं। इतना होते हुए भी वहीवटवार या सरकार ऐसा कोई अनुचित पगला (Step) लेवे तो उनको ऐसा करते हुए अटकाने के लिये यथाशक्य अधिकार माफिक सक्रिय प्रयत्न करना । स्थल : लो० : बाबू पन्नालाल की धर्मशाला वि. | श्री पालीताणा स्थित समस्त सं. २००७ वै. सु. १० बुधवार | श्रमण संघ की तरफ से आ० श्री विजयवल्लभ सूरिजी - ता. १५-५-५६ म० की आज्ञा से पं० समुन्द्र भगवान श्री महावीर केवल ज्ञान विजयजी . कल्याण दिन आ० कीर्तिसागर सूरि आ० वि० महेन्द्र सूरि आ० वि० हिमाचल सूरि आ० वि० भुवनतिलक सूरि | मा० चन्द्रसागर सूरि __ आचार्य, उपाध्याय, पन्यास और मुनिवर मिलकर कुल १५० डेढ़ सौ उपरान्त मुनिराजों की हाजिरी करीब-करीब सब समुदाय की पी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy