SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४] श्री जैन शासन संस्था - उपाश्रय, धर्मशाला, पौषधशाला में भी बिछाई जा सकती है। गुरु महाराज के व्याख्यान स्थल यानि समवसरण में भी काम किया जा सकता है। गुरु महाराज हों और उनकी हाजरी आवश्यक हो तो उनको निश्रा में चतुर्विध श्री संघ की मौजूदगी में किया जा सकता है। ___ संघ शामिल होने का समाचार मिलते ही हरएक को समय पर हाजिर होना अनिवार्य है। श्री संव शामिल होने के समय विलम्ब करने वालों पर उस काम के बिगाड़ने की जवाबदारी आती है। शास्त्रों में "धूली जंघ" शब्द ऐसे प्रसंग पर देखे जाते हैं । (बाहर गांव से आया हुआ होने से पैर-जांघ में उसके धूल लगी हुई है) ऐसी दशा में भी सब काम छोड़कर श्री संघ के एकत्रित होने के समाचार मिलते ही हाजिर होना अनिवार्य है। १३. श्री संघ को जाजम पर झूठ नहीं बोला जा सकता। झूठी तकरार या झूठी जिद नही होनी चाहिए । आज्ञा के विरुद्ध या खुद के स्वार्थ के लिए नहीं बोला जा सकता। जिनाज्ञा सिर चढ़ानी चाहिए। जिनाज्ञा के अनुकूल अभिप्राय देना चाहिये । बिना अर्थ नहीं बोलना चाहिए । झूठ वाद-विवाद, झगड़ा, कलह, आदि से कर्म बन्ध नहीं करना चाहिए। हर एक काम को स्थायी (पूर्ण) करने को नीति रखनी चाहिये । बिगाड़ने की वृत्ति नहीं रखनी चाहिये। १४. श्री संघ आदि का अपमान, निंदा, अपभ्राजना किसी रूप में न होनी चाहिये। अगर कोई शासत-विधान नहीं माने तो बराबर जवाब देना या दूसरे उपायों से मनाना चाहिये । आखिर में सकल श्री संघ या गुरु महाराज की आज्ञा के अनुसार, मर्यादा में लाना चाहिए । इस पर भी न माने तो सामाजिक तथा इतर सामाजिक बल से और अन्त में दूसरा कोई उपाय न हो तो राजसत्ता के बल से भी उसको मर्यादा में लाने का उचित प्रयास करना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy