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________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा | ८४ ( दीखने वाले ) धन आदि पदार्थ नाशवान् हैं, इस लिये वे सब तुच्छ समझे जाते हैं, केवल एक धर्म ही अचल तथा सुख देनेवाला है, यही बात नीतिशास्त्र में भी कही है कि - "चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्वले जीवितमन्दिरे ॥ चलाचले च संसारे, धर्म एको हि निश्चलः " ॥ १ ॥ अर्थात् लक्ष्मी चलायमान है, प्राण चलायमान हैं तथा जीवन और मन्दिर ( घर ) भी चलायमान हैं किन्तु इन चलाचल संसार में एक धर्म ही अचल पदार्थ है ॥ १ ॥ इस लिये धर्म ही महान् है, इस महान् धर्म का पालन करना ही पतिव्रता स्त्री का मुख्य कार्य है, क्योंकि मरने के समय जगत् के नाना प्रकार के धन और आभूषणादि पदार्थ यहां ही पड़े रह जाते हैं इन पदार्थों में से कोई भी साथ नहीं चलता है किन्तु मनुष्य का किया हुआ एक धर्म और अधर्म ही उस के साथ चलता है, इन दोनों में से अधर्म तो मनुष्य को नरक में डाल कर नाना प्रकार के दुःखो का देनेवाला है और धर्म स्वर्ग तथा मोक्ष में ले जा कर परमोत्तम अक्षय और अनन्त सुखों क देने वाला है, देखिये - धर्मशास्त्रों में लिखा भी है कि - "एक एव सुहद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः ॥ शरीरेण समं नाशं, सर्वमन्यत्तु गच्छति ॥ १ ॥ अर्थात मनुष्य का एक धर्म ही सच्चा मित्र है जो कि मरने पर भी उस के पीछे २ जाता है, बाकी तो संसार के सब ( द्रव्य और आभूषण आदि) पदार्थ शरीर के साथ ही नष्ट हो जाते हैं अर्थात् एक भी शरीर के साथ नहीं चलता है ॥ १ ॥ इस लिये हे प्यारी बहिनो ! अधर्म का त्याग कर धर्म का ही ग्रहण करो कि जिस से इस भव में तुम्हारी कीर्ति फैले और पर भव में भी तुम को सुख प्राप्त हो और तुम्हारे करने योग्य धर्म केवल यही है कि तुम अपने पति को अपने सद्गुणों से प्रसन्न रक्खो । वर्तमान काल में बहुत सी स्त्रियां इस बात को बिलकुल नहीं जानती हैं कि पति के साथ हमारा क्या धर्म और कर्तव्य है और यह बात उन के व्यवहार से ही मालूम होती है, क्योंकि बहुत सी स्त्रियां अपने पति से मनमाना वचन बोलती हैं, पति को धमकाती हैं, मर्यादा छोड़ कर पति को गाली देती हैं, पति का सामना करती हैं, पति का अपमान करती हैं, जब पति बाहर से परिश्रम करके था और हारा हुआ घर आता है तब मनोरञ्जन करके विश्रांति ( आराम ) तथा पड़ोसी आदि की समय पर भोजन तैयार काम काज कराती हैं, देने के बदले सासु सुसरा ( श्वशुर) आदि कुटुम्ब की बातें करके उसके मन को और भी दुःखी करती हैं, कर जिमाने के बदले आप बैठी रह कर पति से घर का पति के पास कुछ न होने पर भी दूसरों के अच्छे वस्त्र ( घाघरा, ओढ़ना, कांचली आदि) तथा गहने (आभूषण ) देखकर पति को क्लेश देकर तथा आप भूखी रह कर भूषण आदि करवाती हैं, जिस से निर्धन पति को ऋण के गढ़े में गिर कर अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं, पति को किसी काम में सहायता नहीं देती हैं, घर के सब व्यवहारों का बोझ अकेले घर के स्वामी पर ही डाल देती हैं, पति के सुख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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