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________________ द्वितीय अध्याय । सूको पीपल खरहरो, कलियां हुई विणास ॥ होको मूंधो क्यूं पड्यो, कहु चेला किण दाय ॥ ३१ ॥ गुरुजी पान नहीं। बाईज डोले बहु बुलै, लाव सरै के जाय ॥ आग भभूका क्यूं करै, कहु चेला किण दाय ॥ ३२ ॥ गुरुजी दाँवी नहीं ॥ गाड़ी पड़ी उजाड़े में, पैणगट ठॉली जाय । कांटो लागो पांव में, कहु चेला किण दाय ॥ ३३ ॥ ... गुरुजी जोड़ी नहीं ॥ घोड़ो तिणो न चीखवै, चाकर रूठो जाय ॥ पिँलंग थुकी घर "पोड़ज, कहु चेला किण दाय ॥ ३४ ॥ गुरुजी पायो नहीं ॥ बँडलो रुख बैंधे नहीं, दुनिया मालवे जाय ॥ लिखियो खत कूड़ा पड़े, कहु चेला किण दाय ॥ ३५ ॥ - गुरुजी सौख नहीं ॥ गाड़ी पड़ी गवाड़े में, कुए खड़ी पणिहार ॥ गोरी ॐभी गोखंडे, कहु चेला किण दाय ॥ ३६ ॥ कारण - गुरुजी जोड़ी नहीं ॥ रक्त जो ई-जोती दुई कड़ क्यूं पड्यो, सोच बटाऊ खाय ॥ अणवालोयो क्यूं पड्यो, कहु चेला किण दाय ॥ ३७ ।। गुरुजी फोट गयो॥ १-चूखा हुआ ॥ २-खड़खड़ाता है ॥ ३-नष्ट, नाश ।। ४-हुक्का ।। ५-उलटा ॥ ६-पत्ते (दो में) और तमाखू ।। ७-वाड़॥ ८-हिलती है ॥ ९-बहुत ॥ १०-वोलती है ॥ ११-रस्सा ॥ १२-बहुत तेजी के साथ ॥ १३-भभकना॥ १४-दबाई हुई (तीनों में समान जानना चाहिरे)॥ १५-जंगल ॥ १६-पनिहारी ॥ १७-खाली ॥ १८-जोड़ी का बैल (दो में) और जूते ॥ १९-घास ॥ २०-खाता है॥ २१-नौकर ॥ २२-क्रुद्ध ॥ २३-पलंग ॥ २४-हाने पर भी ॥ २५-जमीन ।। २६-सोता है ॥ २७-पिलाया हुआ, पाया हुआ और चार पाई वा पागा ॥ २८-चट (बड़) ॥ २९-वृक्ष ॥ ३०-बढ़ता है ॥ ३१-मालवा देश ।। ३२-लिखा हुआ । ३३-झूठा ॥३४-शाखा, सुभिक्ष और गवाही ॥ ३५-पड़ी हुई ।। ३६-मुहल्ला ॥ ३७-पानी भरनेगली ॥ ३८-स्त्री ॥ ३९-खड़ी हुई है ॥ ४०-झरोखे में ॥ ४१-जोड़ी का बैल (दो में) और किवाड़ों की जोड़ी ॥ ४२-पीछे का स्थान ।। ४३-यात्री, मुसाफिर ॥ ४४-विना मथा हुआ ।। ४५-फटा हुआ चर्मवस्त्र, फँटा हुआ मार्ग और फटा हुआ दूध ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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