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________________ ७६ जैनसम्प्रदायशिक्षा । वनराजी रो नाम सुण, पंटो छोड़ घर जाय ॥ लिखतां लेखण क्यों तेजी, कहु चेला किण दाय ॥२४॥ गुरुजी सही नहीं ॥ मोती मोटो मोल कम, सरवर पीह न थाय ॥ रावत भागो रॉड़ में, कहु चेला किण दाय ॥ २५ ॥ __गुरुजी पाणी नहीं॥ पान सडै घोड़ो अंडे, विद्या वीसर जाय ॥ रोटो जलै अंगार में, कहु चेला किण दाय ॥ २६ ॥ गुरुजी फेन्यो नहीं॥ दूध उफाण्यो ऊँफण्यो, बच्छै चूंगी गाय ॥ मिनकी माखंण ले गई, कहु चेला किण दाय ॥ २७ ॥ गुरुजी देख्यो नहीं ॥ "धुई धुंवो ना सैश्चरे, महिले पवैन न जाय ॥ झीवर विलखो क्यूँ फिरै, कहु चेला किण दाय ॥ २८ ॥ गुरुजी जाली नहीं ॥ घड़ो झरन्तो ना रहे, पीढ़े रोवै बालें । सासु बैठि बहुँ पारुस, कहु चेला किण दाय ॥ २९ ॥ गुरुजी सौरो नहीं॥ कपड़ो पोत न पड़े, मूंज मेल नाहिँ खाय ॥ चोधरि रूट्यो क्यूं फिरै, कहु चेला किण दाय ॥ ३०॥ गुरुजो कूट्यो नहीं॥ १-सिंह ॥ २-का॥ ३-सुनाई देता है ॥ ४-जागीर ॥ ५-लिखते हुए ॥ ६-कलम ॥ ७-छोड़ दी॥ ८-सेही (जंतुविशेष); मोहर और स्याही ॥ ९-बड़ा ॥ १०-कीमत । ११-तालाब। १२-भीड़।। १३-होती है। १४-नामविशेष ॥ १५-लड़ाई॥ १६-आव, जल और तेज॥ १७-अड़ता है।॥ १८-भूल ॥ १९-रोटी।। २०-अग्नि ।। २१-फेरना यानी संभालना (तीनों में समान)॥ २२-उफान ॥ २३-आया ॥ २४-बछड़ा।॥ २५-पी ली।। २६-बिल्ली।। २७-मक्खन ।। २८-देखा नहीं (तीनों में समान)॥ २९-आग जलाने का गड्डा ।। ३०-धुआं ॥ ३१-निकलता ॥ ३२-महल ॥ ३३-हवा ॥ ३४-मछली पकड़नेवाला ॥ ३५-व्याकुल ।। ३६-जलाई हुई, खिड़की (जाली) और जाल ॥ ३७-झरता हुआ ॥ ३८-छोटी मांची॥ ३९-बालक ॥ ४०-बहू ॥ ४१-परोसती है ॥ ४२-पक्का, नीरोग और अधिकार ।। ४३-गाढापन ॥ ४४-पकड़ता है ॥ ४५-एक घास ॥ ४६-रूठा हुआ ।। ४७-कूटा हुआ (दो में) और मारा हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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