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________________ पञ्चम अध्याय। ७३५ ११-चलते समय यदि गधा मैथुन सेवन करता हुभा मिले तो धन का लाभ तथा कार्य की सिद्धि जानी जाती है। १२-चलते समय यदि गधा बाई तरफ शिश्न को हिलता हुआ दीखे तो कुशल का सूचक होता है। १३-यदि सुभा (तोता) बाईं तरफ बोले तो भय, दाहिनी तरफ बोले तो महालाभ, सूखी हुई लकड़ी पर बैठा हुआ बोले तो भय तथा सम्मुख बोले बन्धन होता है। १४-यदि मैना सामने बोले तो कलह, दाहिनी तरफ बोले तो लाभ और सुख, बाईं तरफ बोले तो अशुभ तथा पीठ पीछे बोले तो मित्रसमागम होता है।। १५-ग्राम को चलते समय यदि बगुला बायें पैर को ऊँचा (ऊपर को) उठाये हुए तथा दाहिने पैर के सहारे खड़ा हुआ दीख पड़े तो लक्ष्मी का लाभ होताहै। . १६-यदि प्रसन्न हुआ बगुला बोलता हुआ दीखे, अथवा ऊँचा ( ऊपर को) उड़ता हुआ दीखे तो कन्या और द्रव्य का लाभ तथा सन्तोष होता है और यदि वह भयभीत होकर उड़ता हुभा दीखे तो भय उत्पन्न होता है। १७-ग्राम को जाते समय यदि बहुत से चकवे मिले हुए बैठे दीखें तो बड़ा लाभ और सन्तोष होता है तथा यदि भयभीत होकर उड़ते हुए दीखें तो भय उत्पन्न होता है। १८-यदि सारस बाईं तरफ दीखे तो महासुख, लाभ और सन्तोष होता है, यदि एक एक बैठा हुआ दीखे तो मित्रसमागम होता है, यदि सामने बोलता हुआ दीखे तो राजा की कृपा होती है तथा यदि जोड़े के सहित बोलता हुआ दीखे तो स्त्री का लाभ होता है परन्तु दाहिनी तरफ सारस का मिलता निषिद्ध होता है। - १९-ग्राम को जाते समय यदि टिटिभी टिंटोडी) सामने बोले तो कार्य की सिद्धि होती है तथा यदि बाई तरफ बोले तो निकृष्ट फल होता है । २०-जाते समय यदि जलकुक्कुटी (जलमुर्गाबी) जल में बोलती हो तो उत्तम फल होता है तथा यदि जल के बाहर बोलती हो तो निकृष्ट फल होता है । २१-ग्राम को चलते समय यदि मोर एक शब्द बोले तो लाभ, दो वार बोले तो स्त्री का लाभ, तीन वार बोले तो द्रव्य का लाभ, चार वार बोले तो राजा की कृपा तथा पाँच वार बोले तो कल्याण होता है, यदि नाचता हुआ मोर दीखे तो उत्साह उत्पन्न होता है तथा यह मंगलकारी और अधिक लाभदायक होता है। २२-गमन के समय यदि समली आहार के सहित वृक्ष के ऊपर बैठी हुई दीखे तो बड़ा लाभ होता है, यदि आहार के विना बैठी हो तो गमन निष्फल १-बुरा अर्थात् अशुभ फल, फल का सूचक। २-एक शब्द' अर्थात् एक वार । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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