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________________ पञ्चम अध्याय 1. ७२५ जो कुछ कार्य करना हो उस का प्रथम स्थिर मन से विचार करना चाहिये, फिर थोड़े चावल, एक सुपारी और दुअन्नी वा चाँदी की अंगूठी आदि को पुस्तकपर रूप रख कर पैसे को हाथ में ले कर इस निम्नलिखित मन्त्र को सात वार पढ़ना चाहिये, फिर तीन वार पासे को ढालना चाहिये तथा तीनों वार के जितने भङ्क हों उन का फल देख लेना चाहिये, ( इस शकुनावलि का फल ठीक २ मिलता है ) परन्तु यह स्मरण रखना चाहिये कि -एक वार शकुन के लेनेपर ( उस का फल चाहे बुरा आवे चाहे अच्छा आवे ) फिर दूसरी वार शकुन नहीं लेना चाहिये । मन्त्र - ओं नमो भगवति कूष्मांडिनि सर्वकार्य प्रसाधिनि सर्वनिमित्तप्रकाशिनि एह्येहि २ वरं देहि २ हलि २ मातङ्गिनि सत्यं ब्रूहि २ स्वाहा । इस मन्त्र को सात वार पढ़ कर "सत्य भाषे असत्य का परिहार करे" इस प्रकार मुख से कह कर पासे को डालना चाहिये, यदि पासा उपस्थित न हो तो नीचे जो पासावलि का यत्र लिखा है उस पर तीन वार अङ्गुलि को फेर कर चाहे जिस कोठे पर रख दे तथा आगे जो उस का फल लिखा है उसे देख ले | पासावलिका यन्त्र । १३४ २१४ १११ ११२ ११३ ११४ १३१ १३२ १३३ २११ २१२ २१३ २३१ २३२ २३३ २३४ ३१४ ३२१ ३४१ ३४२ ३११ ३१२ ३१३ ३३१ ३३२ ३३३ ३३४ ४११ ४१२ ४१३ ४१४ ४२१ ४२२ ४२३ ४३१ ४३२ ४३३ ४३४ ४४१ ४४२ ४४३ १२१ १२२ १२३ १२४ १४१ १४२ १४३ १४४ २२१ २२२ २२३ २२४ २४१ २४२ २४३ २४४ ३२२ ३२३ ३२४ ३४३ ३४४ ४२४ ४४४ पासावलिका का क्रमानुसार फल । १११ - हे पूछने वाले ? यह पासा बहुत शुभ है, तेरे दिन अच्छे हैं, तू ने विलक्षण बात विचार रक्खी है, वह सब सिद्ध होगी, व्यापार में लाभ होगा और युद्ध में जीत होगी । १ - इस सम्बन्ध का जो द्रव्य इकट्ठा हो जावे उस को ज्ञानखाते में लगा देना योग्य होता है, इस लिये जो लोग देश देशान्तरों में रहते हैं उन को उचित है कि काम काज से छुट्टी पा कर अवकाश के समय में व्यर्थ गप्पें मार कर समय को न गमावें किन्तु अपने वर्ग में से जो पुरुष कुछ पठित हो उस के यहाँ यथायोग्य पाँच सात अच्छे २ ग्रन्थों को मँगवा कर रक्खें और उन को सुना करें तथा स्वयं भी बाँचा करें और जो ज्ञानखाते का द्रव्य हो उस से उपयोगी पुस्तकों को मँगा लिया करें तथा उपयोगी साप्ताहिक पत्र और मासिक पत्र भी दो चार मँगाते रहें, ऐसा करने से मनुष्य को बहुत लाभ होता है ।। २ - चौपड़ के पासे के समान काष्ठ; पीतल वा दाँत का चौकोना पासा होना चाहिये, जिस में एक, दो, तीन और चार, ये अंक लिखे होने चाहिये ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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