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________________ पञ्चम अध्याय । ६९९ दूसरी विधि - घटी, पल तथा विपल को द्विगुण ( दूना ) करके ६० से चढ़ा कर ५ का भाग दो, जो लब्ध आवे उसे घण्टा समझो, शेष को ६० से गुणाकर के तथा पल के भङ्कों को जोड़ कर ५ का भाग दो, जो लब्ध आबे उसे मिनट समझो और शेष को साठ ( ६० ) से गुणा कर के तथा विपल के भों को जोड़ कर ५ का भाग दो, जो लब्ध आवे उसे सेकिण्ड समझो, उदाहरण- १४/२०१४५ को द्विगुण ( दूना ) किया तो २८/४०/९० हुए, इन में से अन्तिम अङ्क ९० में ६० का भाग दिया तो लब्ध एक आया, इस एक को पल में जोड़ा तो २८।४१।३० हुए, इन में ५ का भाग दिया तो लब्ध ५ आया, ये ही पाँच घण्टे हुए, शेष ३ को ६० से गुणा करके उन में ४१ जोड़े तो २२१ हुए, इन में ५ का भाग दिया तो लब्ध ४४ हुए, इन्हीं को मिनट समझो, शेष एक को ६० से गुणा करके उन में ३० जोड़े तो ९० हुए, इन में ५ का भाग दिया तो लब्ध १८ हुए, इन्हीं को सेकिण्ड समझो, बस १४ घड़ी, २० पल तथा ४५ विपल के ५ घण्टे, ४४ मिनट तथा १८ सेकिण्ड हुए । इसी प्रकार यदि घण्टा ; मिनट और सेकिण्ड के घटी; पल और विपल बनाने हों तो घण्टा, मिनट और सेकिण्ड को ५ से गुणा कर तथा ६० से चढ़ा कर २ का भाग दो अर्थात् आधा कर दो तो घण्टा मिनट और सेकिण्ड के घटी; पल और विपल बन जावेंगे, जैसे- देखो ! इन्हीं ५ घण्टे; ४४ मिनट तथा १८ सेकिण्ड को ५ से गुणा किया तो २५/२२०/९० हुए, इन को ६० से चढ़ाया तो २८।४१।३० हुए, इन में दो का भाग दिया ( आधा किया ) तो १४/२०/४५ रहे अर्थात् ५ घण्टे ४४ मिनट तथा १८ सेकिण्ड की १४ घटी, २० पल तथा ४५ विपल हुए, यह भी स्मरण रखना चाहिये कि दो का भाग देने पर जब आधा बचता है तब उस की जगह ३० माना जाता है, जैसे कि - ४१ का आधा २०॥ होगा, इस लिये वहाँ आधे के स्थान में ३० समझा जावेगा, इसी प्रकार ढाई गुणा करने में भी उक्त बात का स्मरण रखना चाहिये । इस का एक अति सुलभ उपाय यह भी है कि-घण्टे, मिनट और सेकिण्ड की जब घटी आदि बनाना हो तो घण्टे आदि को दूना कर उस में उसी का आधा जोड़ दो, जैसे- ५१४४/१८ को दूना किया तो १०।८८।३६ हुए, उन में उन्हीं का आधा २।५२।९ जोड़े तो १२।१४०/४५ हुए, इन में ६० का भाग दिया तो १४।२०।४० हुए भर्थात् उक्त घण्टे आदि के उक्त दण्ड और पल आदि हो गये ॥ १ - पहिले ९० में ६० का भाग दिया तो लब्ध एक आया, इस एक को २२० में जोड़ा तो २२१ हुए, शेष बचे हुए ३० को वैसा ही रहने दिया, अब २२१ में ६० का भाग दिया तो लब्ध ३ आये, इन ३ को २५ में जोड़ा तो २८ हुए, शेष बचे हुए ४१ को वैसा ही रहने दिया, बस २८।४१।३० हो गये ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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