SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 712
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा । अर्कदग्धा तथा चन्द्रदग्धा तिथियों का वर्णने । अर्कदग्धा तिथियाँ। चन्द्रदग्धा तिथियाँ । सङ्क्रान्ति। तिथि। चन्द्रराशि । तिथि। धन तथा मीन की। द्वितीया । वृष और कर्क राशि के चन्द्र में। दशमी। वृष तथा कुम्भ की। चतुर्थी। धन और कुम्भ राशि के चन्द्र में। द्वितीया । मेष तथा कर्क की। षष्ठी। वृश्चिक और कन्या राशि के चन्द्र में। द्वादशी । कन्या तथा मिथुन की। अष्टमी। मीन और मकर राशि के चन्द्र में। अष्टमी। वृश्चिक तथा सिंह की। दशमी। तुल और सिंह राशि के चन्द्र में। षष्टी। मकर तथा तुल की। द्वादशी। मेष और मिथुन राशि के चन्द्र में। चतुर्थी । इष्ट काल साधन। पहिले कह चुके हैं कि-जन्मकुंडली वा जन्मपत्री के बनाने के लिये इष्टकाल का साधन करना अत्यावश्यक होता है, क्योंकि-इस (इष्टकाल ) के शुद्ध किये विना जन्मपत्री का फल कभी ठीक नहीं मिल सकता है, इस लिये अब इस विषय का संक्षेप से वर्णन किया जाता है: घण्टा बनाने की विधि-एक घटी (घड़ी) के २४ मिनट होते हैं, इस लिये ढाई दण्डै (घड़ी) का एक घण्टा (अर्थात् ६० मिनट) होता है, इस रीति से अहोरात्र (रात दिन) साठ घटी का अर्थात् चौबीस घण्टे का होता है, अब घण्टा आदि बनाने के समय इस बात का ख्याल रखना चाहिये किजितनी घटी और पल हों उन को २॥ से भाग देना चाहिये, क्योंकि-इस से घण्टा; मिनट तथा सेकिण्ड तक मालूम हो सकते हैं, जैसे-देखो ! १४ घटी, २० पल तथा ४५ विपल के घण्टे बनाने हैं-तो पाँच ढाम साढ़े बारह को निकाला तो शेष (बाकी) रहा-१।५०।४५, अब एक घटी के २४ मिनट हुए तथा ५० पल के-२० ढाम ५० अर्थात् २० मिनट हुए, इन में पूर्व के २४ मिनट मिलाये तो ४४ मिनट हुए तथा ४५ विपल के-१८ ढाम ४५ अर्थात् १८ सेकिण्ड हुए, इस लिये-१४ घटी २० पल तथा ४५ विपल के पूरे ५ घण्टे, ४४ मिनट तथा १८ सेकिण्ड हुए। १-अर्कदग्धा तथा चन्द्रदग्धा तिथियों में शुभ तथा माङ्गलिक कार्य का करना अत्यन्त निषिद्ध है ॥ २-स्मरण रहे कि सवाये का निशान इस प्रकार से लिखा जावेगा-१।१५, ढाई का निशान -२२३०, पौने दो का ११४५ पूरी राशि ६० है, इसी का अंश २।३ वा हिस्सा १५।३०।४५ जानना चाहिये ॥३-दण्ड, नाड़ी और कला आदि संज्ञायें घटी (घड़ी) की ही हैं और पल, विघटी तथा विकला इत्यादि विपल ही की संज्ञायें हैं ॥ ४-१४।२०।४५ बाकी १२२।३० अब २० में से ३० नहीं घट सकता है, इस लिये बची हुई दो घटिकाओं में से एक धटिका को ले कर उस के पल बनाये तो ६० पल हुए, इन को २० में जोड़ा तो ८० पल हुए, इन में से ३० को घटाया तो ५० बचे, इस लिये ११५०।४५ हुए, इसी प्रकार सब जगह जानना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy