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________________ पञ्चम अध्याय । पाँचवीं संख्या-लालाणी, वाँठिया, विरमेचा, हरखावत, साह और मल्लावत गोत्र । विक्रम संवत् ११६७ (एक हजार एक सौ सड़सठ) में पँवार राजपूत लालसिंह को खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्री जिनबल्लभसूरि जी महाराज ने प्रतिबोध देकर उस का माहाजन वंश और लालाणी गोत्र स्थापित किया, लालसिंह के सात पुत्र थे जिन में से बड़ा पुत्र बहुत वंठ अर्थात् जोराबर था, उसी से वाँठिया गोत्र कहलाया, इसी प्रकार दूसरे चार पुत्रों के नाम से उन के भी परिवार वाले लोग विरमेचा, हरखावत, साह और मल्लावत कहलाने लगे। सूचता-युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी (जो कि बड़े दादा जी के नाम से जैनसंघ में प्रसिद्ध हैं ) महाराज ने विक्रम संवत् ११७० (एक हजार एक सौ सत्तर) से लेकर विक्रम संवत् १२१० (एक हजार दो सौ दश) तक में राजपूत, महेश्वरी वैश्य और ब्राह्मण वर्णवालों को प्रतिबोध देकर सवा लाख श्रावक बनाये थे, इस के प्रमाणरूप बहुत से प्राचीन लेख देखने में आये हैं परन्तु एक प्राचीन गुरुदेव के स्तोत्रे में यह भी लिखा है कि-प्रतिबोध देकर एक लाख तीस हजार श्रावक बनाये गये थे, उक्त श्रावकसंघ में यद्यपि ऊपर लिखे हुए तीनों ही वर्ण थे परन्तु उन में राजपूत विशेष थे, उन को अनेक स्थलों में प्रतिबोध देकर उन का जो माहाजन वंश और अनेक गोत्र स्थापित किये गये थे उन में से जिन २ गोत्रों का इतिहास प्राप्त हुआ उन को अब लिखते हैं। छठी संख्या-चोरडिया, भटनेरा, चौधरी, सावणसुखा, गोलेच्छा, वुच्चा, पारख और गद्दहिया गोत्र । चन्देरी के राजा खरहत्थसिंह राठोर ने विक्रम संवत् ११७० (एक हजार एक सौ सत्तर) में युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी महाराज के उपदेश १-इन का जन्म विक्रम संवत् ११३२ में, दीक्षा ११४१ में, आचार्यपद ११६९ में और देवलोक १२११ में आषाढ़ सुदि ११ के दिन अजमेर नगर में हुआ ॥ २-बड बडे गामें ठाम ठामें भूपती प्रतिबोधिया ॥ इग लक्खि ऊपर सहस तीसा कलू में श्रावक किया | परचा देखाड्या रोग झाड्या लोक पायल संतए ॥ जिणदत्त सूरि सूरीस सदगुरु सेवतां सुख सन्तए ॥२१॥ ३-कनोज में आसथान जी राठौर ने युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरी जी महाराज से कहा था कि-"राठौर आज से लेकर जैनधर्म को न पालनेवाले भी खरतरगच्छवालों को अपना गुरु मानेंगे" आसथान जी के ऊपर उक्त महाराज ने जब उपकार किया था उस समय के प्राचीन दोहे बहुत से हैं जो कि उपाध्याय श्री मोहन लाल जी गणी के द्वारा हम को प्राप्त हुए हैं, जिन में से इस एक दोहे को तो प्रायः बहुत से लोग जानते भी हैंदोहा-गुरु खरतर प्रोहित सेवड़, रोहिडियो बारह ॥ घर को मंगत दे दड़ो, राठोड़ां कुल भट्ठ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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