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________________ ६१० जैनसम्प्रदायशिक्षा | सब कुटुम्ब के सहित राजा नानुदे पड़िहार ने दयामूल धर्म का ग्रहण किया तथा गुरुजी महाराज ने उस का महाजन वंश और कुकुड़ चोपड़ा गोत्र स्थापित किया, राजा नानुदे पड़िहार का मन्त्री था उस ने भी प्रतिबोध पाकर दयामूल जैनधर्म का ग्रहण किया और गुरु जी महाराज ने उस का माहाजन वंश और गणेधर चोपढ़ा गोत्र स्थापित किया । राजकुमार धवलचन्दजी से पाँचवीं पीढ़ी में दीपचन्द जी हुए, जिन का विवाह ओसवाल महाजन की पुत्री से हुआ था, यहाँ तक ( उन के समय तक ) राजपूतों से सम्बन्ध होता था, दीपचन्द जी से ग्यारहवी पीढ़ी में सोनपाल जी हुए, जिन्हों ने संघ निकाल कर शेत्रुञ्जय की यात्रा की, सोनपाल जी के पोता ठाकरसी जी बड़े बुद्धिमान् तथा चतुर हुए, जिन को राव धुंडे जी राठौर ने अपना कोठार सुपुर्द किया था, उसी दिन से प्रजा ठाकरसी जी को कोठारी जी के नाम से पुकारने लगी, इन्हीं से कोठारी नख हुआ अर्थात् ठाकरसी जी की औलाद वाले लोग कोठारी कहलाने लगे, कुकुड़ चोपड़ा गोत्र की ये ( नीचे लिखी हुई ) चार शाखायें हुई: --→ १ - कोठारी | २ - बुबकिया । ३ - धूपिया । ४ - जोगिया । इनमें से बुबकिया आदि तीन शाखा वाले लोगों के कुटुम्ब में बजने वाले गहनों के पहिरने की खास मनाई की गई है परन्तु यह मनाई क्यों की गई है अर्थात् इस ( मनाई ) का क्या कारण है इस बात का ठीक २ पता नहीं लगा है। चौथी संख्या धाडीवाल गोत्र । गुजरात देश में डींडो जी नामक एक खीची राजपूत धाड़ा मारता था, उस को विक्रम संवत् ११५५ ( एक हजार एक सौ पचपन ) में वाचनाचार्य पद पर स्थित श्री जिन बल्लभसूरि जी महाराज ने प्रतिबोध देकर उस का माहाजन वंश और धाड़ीवाल गोत्र स्थापित किया, डीडों जी की सातवीं पीढी में शांवल जी हुए, जिन्हों ने राज के कोठार का काम किया था, इस लिये उन की औलाद वाले लोग कोठारी कहलाने लगे, सेढो जी धाड़ीवाल जोधपुर की रियासत के तिवरी गांव में आकर बसे थे, उन के शिर पर टाँट थी इस लिये गाँववाले लोग सेढो जी को टॉटिया २ कह कर पुकारने लगे, अत एव उन की औलादवाले लोग भी टॉटिया कहलाने लगे । १ - इस गोत्रवाले लोग बालोतरा तथा पञ्चभद्रा आदि मारवाड़ के स्थानों में है ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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